




कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने भारतीय राजनीति में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने दक्षिण और पूर्वी एशिया के देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां जनता अब वंशवादी राजनीति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। उनके इस बयान को तुरंत राहुल गांधी से जोड़कर देखा जाने लगा। भाजपा ने इसे कांग्रेस पर सीधा हमला करार दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस अब खुद अपने नेताओं की नजर में ‘नेपो किड्स की पार्टी’ बन चुकी है।
तिवारी ने अपने पोस्ट में लिखा कि दक्षिण और पूर्वी एशिया के कई देशों में जनता वंशवादी राजनीति से ऊब चुकी है और लोकतंत्र का वास्तविक आधार केवल योग्यता और जनता की सेवा है, न कि परिवारवाद। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में राजनीतिक दलों को इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा। इस टिप्पणी के सामने आते ही राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई और इसे सीधे गांधी परिवार, विशेषकर राहुल गांधी, पर कटाक्ष माना जाने लगा।
भाजपा ने इस बयान को हाथों-हाथ लिया। पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि कांग्रेस का ही एक वरिष्ठ नेता जब ‘नेपो किड्स’ और वंशवाद पर सवाल उठा रहा है, तो यह स्पष्ट है कि कांग्रेस के भीतर असंतोष गहराता जा रहा है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि मनीष तिवारी ने वही कहा है जो पूरा देश लंबे समय से देख रहा है। कांग्रेस का पूरा ढांचा वंशवाद पर टिका है और यही कारण है कि आज कांग्रेस जमीन पर कमजोर हो गई है। भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी योग्यता नहीं बल्कि वंशवाद पर चलती है और तिवारी के बयान ने इस सच को सामने रख दिया है।
कांग्रेस ने हालांकि तुरंत सफाई पेश की और कहा कि तिवारी के बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि मनीष तिवारी ने वंशवाद पर सामान्य टिप्पणी की थी और इसका राहुल गांधी से कोई संबंध नहीं है। भाजपा केवल इसे तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है ताकि कांग्रेस और उसके नेतृत्व पर हमला किया जा सके। स्वयं तिवारी ने भी बाद में बयान दिया कि उनका इशारा किसी खास नेता या पार्टी की ओर नहीं था बल्कि राजनीति के एक व्यापक चलन पर आधारित था। उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र मजबूत है और यहां जनता ही अंतिम फैसला करती है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मनीष तिवारी का यह बयान कांग्रेस के भीतर खींचतान का भी संकेत देता है। तिवारी उन नेताओं में शामिल रहे हैं जो जी-23 ग्रुप का हिस्सा थे। यह समूह कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव और आंतरिक लोकतंत्र की मांग करता रहा है। ऐसे में उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस 2025 बिहार विधानसभा चुनाव और आगे आने वाले कई राज्यों के चुनावों की तैयारी कर रही है। इस समय वंशवाद का मुद्दा उठना पार्टी की एकता पर सवाल खड़ा करता है।
भारतीय राजनीति में वंशवाद का मुद्दा नया नहीं है। भाजपा लगातार गांधी परिवार को निशाने पर लेकर कांग्रेस को वंशवाद की पार्टी बताती रही है। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि भाजपा में भी कई नेता परिवारवाद की वजह से आगे बढ़े हैं लेकिन भाजपा इसे केवल कांग्रेस तक सीमित कर देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, मनीष तिवारी का बयान इस बहस को और अधिक हवा देता है। जब उन्होंने दक्षिण और पूर्वी एशिया का उदाहरण दिया, तो यह साफ है कि वे भारत की राजनीति को भी उसी संदर्भ में देख रहे हैं।
भाजपा के लिए यह बयान चुनावी हथियार बन सकता है। राहुल गांधी पहले ही भाजपा के मुख्य निशाने पर रहते हैं और अब कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता का बयान भाजपा को नया मौका देता है। कांग्रेस के लिए समस्या यह है कि उसे एक तरफ भाजपा के हमलों का जवाब देना है और दूसरी ओर अपने भीतर के असंतोष को भी संभालना है।
मनीष तिवारी के बयान ने वंशवाद बनाम योग्यता की बहस को फिर से जीवित कर दिया है। भाजपा इसे राहुल गांधी के खिलाफ सबूत के तौर पर पेश कर रही है जबकि कांग्रेस इसे एक सामान्य टिप्पणी बताकर बचाव में लगी है। लेकिन इतना तय है कि आने वाले चुनावी माहौल में यह मुद्दा गूंजेगा और कांग्रेस के भीतर और बाहर दोनों जगह इसका असर देखने को मिलेगा। वंशवाद की राजनीति और योग्यता के आधार पर नेतृत्व की बहस भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक बार फिर केंद्र में आ गई है।