




पश्चिम बंगाल में बहुचर्चित स्कूल भर्ती घोटाले ने एक बार फिर से राजनीतिक और न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी है। राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी की जमानत याचिका को कोलकाता उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। यह फैसला उस समय आया है जब राज्य में दुर्गा पूजा की तैयारियाँ जोरों पर हैं और लाखों लोग इस पर्व के लिए सार्वजनिक स्थलों पर जुटते हैं। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था और राजनीतिक तनाव को लेकर सरकार की चिंता बढ़ गई है।
स्कूल भर्ती घोटाले की जड़ें उस समय उजागर हुईं जब सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षक और गैर-शिक्षक पदों पर अनियमित भर्तियों की खबरें सामने आईं। आरोप लगाया गया कि अयोग्य उम्मीदवारों को सिफारिशों, फर्जी दस्तावेजों और पैसे के दम पर नियुक्त किया गया। भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता के अभाव और सरकारी तंत्र के दुरुपयोग की बात सामने आई। इस मामले में सबसे बड़ा नाम पार्था चटर्जी का था, जो उस समय शिक्षा मंत्री थे। उनके साथ उनकी करीबी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी को भी गिरफ्तार किया गया था। ईडी ने छापेमारी के दौरान करोड़ों रुपये नकद, सोना और संपत्तियों के दस्तावेज बरामद किए थे, जिससे यह मामला राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया था।
बाद में इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय से होते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपी गई। CBI ने अब तक कुल 21 लोगों पर आरोप तय कर दिए हैं। इनमें सरकारी अधिकारी, SSC बोर्ड के सदस्य और कुछ निजी लोग भी शामिल हैं। कोलकाता हाई कोर्ट में पार्था चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान वकीलों ने उनकी उम्र, स्वास्थ्य और लंबे समय से जेल में बंद रहने का हवाला दिया, लेकिन न्यायालय ने इन तर्कों को अस्वीकार कर दिया। कोर्ट का कहना था कि आरोपी एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उनके बाहर आने पर गवाहों और सबूतों पर असर पड़ सकता है। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अभी इस मामले में सरकार की ओर से अभियोजन स्वीकृति नहीं दी गई है, जो एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।
इससे पहले एक खंडपीठ में जमानत को लेकर मतभेद हुआ था, जिसमें एक न्यायाधीश ने जमानत देने का समर्थन किया, जबकि दूसरे ने इसका विरोध किया। इस स्थिति में मामला एकल पीठ को भेजा गया, जहां न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती ने फैसला सुनाया और चटर्जी समेत पाँच अन्य आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि भर्ती प्रक्रिया के साथ आम जनता का विश्वास जुड़ा हुआ है और ऐसे मामलों में न्यायिक कठोरता जरूरी है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अगस्त में पार्था चटर्जी को एक अन्य मामले में सशर्त जमानत दी थी, लेकिन वर्तमान भर्ती घोटाले से जुड़ी मामलों के चलते वह फिलहाल जेल में ही रहेंगे। इस पूरे घटनाक्रम ने बंगाल की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। सत्तारूढ़ दल पर विपक्ष ने जमकर हमला बोला है, वहीं राज्य सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
अब जब राज्य दुर्गा पूजा के उल्लास में डूबा हुआ है, इस तरह के बड़े भ्रष्टाचार के मामले और उस पर न्यायालय की सख्ती, आम जनता के बीच व्यापक चर्चा का विषय बन चुके हैं। भीड़भाड़, पंडालों की सजावट, और हजारों की तादाद में जुटने वाले लोगों के बीच राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दे गर्म हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी तरह की अशांति या राजनीतिक प्रदर्शन से त्योहार की शांति भंग न हो।
मीडिया और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर व्यापक बहस चल रही है। जनता के बीच सरकारी नियुक्तियों में पारदर्शिता की मांग जोर पकड़ रही है। खासकर उन युवाओं में जो वर्षों की मेहनत के बाद सरकारी नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे थे और इस घोटाले के चलते उनकी उम्मीदों को गहरा आघात लगा है। यह मामला बंगाल की न्याय प्रणाली, प्रशासनिक जवाबदेही और राजनीतिक नैतिकता की असली परीक्षा बन चुका है।
जैसे-जैसे मामले की जांच आगे बढ़ेगी, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अन्य आरोपी भी कानून के शिकंजे में आएंगे और क्या सरकार इस पर कोई सख्त कार्रवाई करेगी या फिर यह मुद्दा आने वाले चुनावों में एक और सियासी हथियार बन जाएगा। एक बात तय है कि पार्था चटर्जी की जमानत याचिका की खारिजी ने इस केस को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया है और इससे राज्य की राजनीति और न्याय व्यवस्था दोनों पर दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है।