




भारत में डिजिटल फ्रॉड के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है और अब आयकर विभाग की जांच में 170 करोड़ रुपये के क्रिप्टोकरेंसी स्कैम का बड़ा खुलासा हुआ है। यह मामला तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से जुड़ा है, जहां किसानों, मजदूरों और फूड डिलीवरी करने वाले कर्मचारियों के नाम का इस्तेमाल करके भारी-भरकम डिजिटल लेनदेन किए गए।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जिन लोगों के नाम और पहचान का उपयोग किया गया, उन्हें इस पूरे खेल की कोई जानकारी तक नहीं थी।
कैसे सामने आया मामला?
आयकर विभाग की फॉरेन इन्वेस्टिगेशन यूनिट (FIU) ने जब क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े लेनदेन की गहन जांच शुरू की, तब इस धोखाधड़ी का खुलासा हुआ। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने पहले 20 संदिग्ध मामलों की पहचान की थी। इनमें से 9 मामलों की जांच पूरी कर ली गई है। जांचकर्ताओं ने पाया कि सभी मामलों में लेनदेन उन व्यक्तियों के नाम पर हुए, जो आम ग्रामीण, किसान, मजदूर या फूड डिलीवरी कर्मचारी थे।
इन निर्दोष नागरिकों का डिजिटल स्कैम से कोई लेना-देना नहीं था। उनके नाम और पहचान का इस्तेमाल केवल काले धन को सफेद करने और संदिग्ध निवेश छिपाने के लिए किया गया।
भोल-भाले लोगों का इस्तेमाल
आधिकारिक जांच में पता चला कि स्कैमर्स ने उन लोगों को टारगेट किया, जिन्हें डिजिटल ट्रेडिंग या क्रिप्टोकरेंसी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी किसानों और मजदूरों के नाम पर बड़े-बड़े वॉलेट बनाए गए। फूड डिलीवरी करने वाले युवाओं के आधार और पैन डिटेल्स का इस्तेमाल कर लाखों के ट्रेड दिखाए गए। ग्रामीण इलाकों के ऐसे लोग, जिनका बैंकों या डिजिटल ऐप्स से सीमित संपर्क है, उन्हें पहचान की चोरी का शिकार बनाया गया।
क्यों चुने गए ये लोग?
विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे भोल-भाले नागरिकों को चुनने के पीछे तीन कारण थे:
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तकनीकी ज्ञान की कमी: ये लोग डिजिटल फ्रॉड को आसानी से समझ नहीं सकते।
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कम आय वाले लोग: जांच एजेंसियों के लिए यह मानना कठिन होता है कि कम आय वाले व्यक्ति करोड़ों के लेनदेन कर सकते हैं।
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निगरानी से बचाव: ऐसे मामलों से बड़े निवेशकों और असली अपराधियों की पहचान छिपाई जा सकती है।
क्रिप्टोकरेंसी में फर्जी ट्रेडिंग का खेल
क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल अक्सर गुमनाम और तेज लेनदेन के लिए किया जाता है। स्कैमर्स ने इसी कमजोरी का फायदा उठाया। 170 करोड़ रुपये के ट्रेड्स अलग-अलग वॉलेट्स में दिखाए गए। लेनदेन ऐसे व्यक्तियों के नाम पर रजिस्टर किए गए, जिनका क्रिप्टो से कोई संबंध नहीं था। इससे स्कैमर्स ने अपने काले धन को डिजिटल ट्रेडिंग के जरिए वैध दिखाने की कोशिश की।
आयकर विभाग की सख्ती
जांचकर्ताओं ने पाया कि अब तक जिन 9 मामलों की जांच हुई है, उनमें एक भी लेनदेन असली लाभार्थी के पास नहीं पहुंचा। सभी ट्रेड केवल कागज़ों और डिजिटल रिकॉर्ड्स में दर्ज थे।
आयकर विभाग ने कहा है कि इस स्कैम में शामिल लोगों की पहचान जल्द उजागर की जाएगी। साथ ही, जिन निर्दोष नागरिकों के नाम का इस्तेमाल हुआ, उन्हें किसी कानूनी परेशानी में नहीं फंसाया जाएगा।
विशेषज्ञों की राय
डिजिटल सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना भारत में साइबर सुरक्षा और पहचान सत्यापन प्रणाली की कमजोरी को उजागर करती है।वित्तीय लेनदेन में आधार और पैन के दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है। ग्रामीण और अशिक्षित लोगों को डिजिटल धोखाधड़ी के बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है। क्रिप्टोकरेंसी जैसे अनियमित बाजार में पारदर्शिता की कमी बड़े स्कैम को जन्म देती है।
ग्रामीणों की बेबसी और प्रतिक्रिया
जिन लोगों के नाम इस स्कैम में सामने आए हैं, वे खुद हैरान हैं। एक किसान ने जांचकर्ताओं से कहा,
“मुझे तो पता भी नहीं कि क्रिप्टोकरेंसी क्या होती है। मेरा नाम कैसे इस्तेमाल कर लिया, यह समझ से बाहर है।”
इसी तरह एक फूड डिलीवरी बॉय ने कहा,
“हम रोज़ मेहनत से कमाते हैं। अगर हमारा नाम ऐसे स्कैम में आएगा तो समाज में हमारी बदनामी होगी।”
170 करोड़ रुपये का यह डिजिटल स्कैम यह बताता है कि अपराधी अब नई तकनीक और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस घटना से तीन बड़ी बातें साफ होती हैं:
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ग्रामीण और मजदूर वर्ग को डिजिटल सुरक्षा की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
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क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग पर मजबूत नियामक (regulatory) व्यवस्था जरूरी है।
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पहचान चोरी रोकने के लिए आधार-पैन से जुड़े सिस्टम में और सुधार होना चाहिए।
आयकर विभाग की जांच जारी है और आने वाले दिनों में इस स्कैम के असली मास्टरमाइंड्स के सामने आने की संभावना है।
यह मामला न केवल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि डिजिटल दुनिया में सुरक्षा की अनदेखी कितनी महंगी साबित हो सकती है।