




बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी बढ़ रही है और कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी के नेतृत्व में महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के लिए तीन बड़े वादे पेश किए हैं। प्रियंका गांधी ने घोषणा की है कि यदि कांग्रेस सरकार बनेगी, तो राज्य में उन महिलाओं को ₹2,500 प्रतिमाह आर्थिक सहायता मिलेगी, जिन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा बताया गया कि हर जरूरतमंद महिला को “मुफ्त इलाज” की सुविधा दी जाएगी, जिसमें इलाज की सीमा ₹25 लाख तक होगी। साथ ही, भूमिहीन परिवारों को कुछ धुर भूमि (3‑5 डिकिटल जमीन) भी प्रदान की जाएगी ताकि वे अपना आशियाना या कृषि‑उपयोग के लिए जमीन पा सकें।
प्रियंका गांधी ने यह घोषणाएँ एक सार्वजनिक सभा में कही, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएँ एवं भूमिहीन परिवारों के लोग मौजूद थे। उनका कहना था कि देश में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है और उन्हें सशक्त बनाने के लिए केवल वादे नहीं, बल्कि क्रियाशील नीतियों की जरूरत है।
पहला और सबसे बड़ा वादा महिलाओं के लिए मासिक आर्थिक सहायता है। इस योजना के तहत उन महिलाओं को ₹2,500 प्रति माह दिया जाएगा जो घर‑गृहस्थी, रोजगार की कमी या सीमित संसाधनों के कारण आर्थिक रूप से असमर्थ हैं। प्रियंका ने कहा कि यह राशि उनकी दैनिक आवश्यकताओं को संभालने, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य खर्च और अन्य छोटे‑मोटे खर्चों में उपयोगी होगी।
उनका तर्क है कि महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता मिलने से उनके परिवार और समुदायों में आत्म‑सम्मान और निर्णय‑क्षमता बढ़ेगी। इस योजना के क्रियान्वयन में लाभार्थियों की पहचान, बैंक खातों की सुविधा और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण प्रमुख चुनौतियाँ होंगी।
दूसरा वादा स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ा है। प्रियंका गांधी ने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो राज्य सरकार “फ्री ट्रीटमेंट स्कीम” लागू करेगी, जिसमें मोर्टलिटी, गंभीर बीमारी, सर्जरी और अन्य उच्च लागत वाले इलाज की स्थिति में ₹25 लाख तक की खर्च की गारंटी होगी।
यह योजना मरीजों और उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ कम करेगी। ग्रामीण इलाकों और क्षेत्रीय अस्पतालों में सुविधाएँ बेहतर बनाने पर जोर दिया जाएगा ताकि लोगों को इलाज के लिए दूर‑दराज नहीं जाना पड़े। साथ ही, इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों की क्षमता, चिकित्सक उपलब्धता और दवाइयों की आपूर्ति सुनिश्चित करना बड़ी प्राथमिकता होगी।
तीसरा वादा भूमिहीन परिवारों के लिए है। प्रियंका गांधी ने कहा कि जिन परिवारों के पास अपनी कोई जमीन नहीं है, उन्हें गांवों में 5 डिकिटल तक और शहरी इलाकों में 3 डिकिटल भूमि दी जाएगी, ताकि वे आवास या कृषि उपयोग के लिए इसका उपयोग कर सकें।
यह कदम आर्थिक असमानता और आवास की समस्या से जूझ रही जनता के लिए बड़ा राहत हो सकता है। भूमि वितरण से उनका जीवन स्तर सुधरेगा, खेती‑बाड़ी वे कर सकेंगे या आवास बनाने में कुछ हद तक आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
इन वादों का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव गहरा हो सकता है। महिलाओं की गरीबी, स्वास्थ्य खर्च और रहने‑खाने के लिए जमीन की कमी अक्सर चुनावी मुद्दे बनती हैं। इन वादों से कांग्रेस को ग्रामीण महिलाओं और कमजोर वर्ग के बीच ज़्यादा समर्थन मिल सकता है।
लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। इस तरह की योजनाएँ बड़े बजट की मांग करेंगी, और राज्य सरकार को वित्तीय प्रबंधन और संसाधनों की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, लाभार्थियों की सही पहचान, भ्रष्टाचार नियंत्रण, फंड बैंकिंग नेटवर्क और प्रशासनिक कार्यप्रणाली में दक्षता ज़रूरी होगी।
विपक्षी दलों ने अभी इस वादे की सत्यता और व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं। कुछ आलोचक मानते हैं कि ₹2,500 प्रति माह की राशि महंगाई और अन्य खर्चों का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी। उन्होंने यह भी कहा है कि मुफ्त इलाज की योजना लागू होने पर अस्पतालों में भार बढ़ेगा और संसाधनों की कमी होगी।
भूमिहीनों को जमीन देने के वादे को भी लेकर यह सवाल उठ रहा है कि सरकार भूमि मुक्ति, मालिकाना हल और कानूनी दस्तावेजों की व्यवस्था कैसे करेगी। जमीन से जुड़े पुराने विवाद, भू-स्वामित्व के मामलों में दायर मुकदमे, और वादियों की जमीन की स्थिति बताती है कि इस दिशा में काम करना आसान नहीं होगा।
यदि कांग्रेस पार्टी इन वादों को गंभीरता से लागू करने की स्थिति में आती है, तो इन्हें कानून में पिरोना होगा। विधानसभा में प्रस्ताव पेश करना, बजट आवंटन करना, लाभार्थियों की सूची तैयार करना और स्थानीय प्रशासन की भागीदारी सुनिश्चित करना होगा।
इसके साथ ही, कांग्रेस को यह साबित करना होगा कि ये योजनाएँ केवल चुनावी वादे नहीं बल्कि ग्रामीण और शहरी गरीबों की ज़िम्मेदार पेशकश हैं।
प्रियंका गांधी द्वारा दिए गए ये तीन वादे — महिलाओं को ₹2,500 प्रति माह की सहायता, मुफ्त इलाज की सुविधा ₹25 लाख तक, और भूमिहीन परिवारों को सीमित जमीन — बिहार के चुनावी मुद्दों में एक केंद्र बिंदु बन सकते हैं। यदि ये योजनाएँ निष्पक्षता, पारदर्शिता और सक्षम प्रशासन के माध्यम से लागू हुईं, तो बिहार के उन लोगों के जीवन में बदलाव ला सकती हैं जो लंबे समय से विकास प्रक्रिया से बाहर रह गए हैं।
लेकिन यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि ये वादे पूरा हो पाएँगे या नहीं। चुनाव के बाद इन वादों का कार्यान्वयन ही कांग्रेस पार्टी की वास्तविक क्षमता और प्रतिबद्धता परिमाणित करेगा।