




कहते हैं कि यदि हौसला और मेहनत हो तो छोटी-सी शुरुआत भी बड़ी मंजिल तक पहुंचा सकती है। ओडिशा के नवरंगपुर जिले के झारिगांव गांव के जितेंद्र मोहराणा ने इस बात को सच कर दिखाया है। कोरोना महामारी के दौर में जब लोगों के लिए रोज़गार और कारोबार दोनों ही चुनौती बन गए थे, तब उन्होंने महज़ 2,000 रुपये से वर्मीकम्पोस्ट का छोटा प्रोजेक्ट शुरू किया। आज यही छोटा कदम उन्हें सफलता की ऊंचाइयों तक ले गया है। उनका जैविक खाद का व्यवसाय अब सालाना 30 लाख रुपये का टर्नओवर कर रहा है।
जितेंद्र की यह कहानी न सिर्फ मेहनत और धैर्य का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे सही सोच और नए विचार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। ग्रामीण इलाकों से जुड़ी उद्यमिता की यह मिसाल युवाओं को भी यह संदेश देती है कि सफलता पाने के लिए शहरों की ओर भागने की ज़रूरत नहीं है।
महामारी के समय जब लॉकडाउन लगा था और कामकाज ठप हो गए थे, तब जितेंद्र ने खेती और मिट्टी से जुड़े कामों पर विचार किया। वे पहले से ही कृषि के महत्व को समझते थे। लेकिन इस बार उन्होंने जैविक खाद बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने पास मौजूद थोड़े से पैसे, यानी 2000 रुपये से वर्मीकम्पोस्ट का छोटा प्रोजेक्ट लगाया। शुरुआती दिनों में यह काम चुनौतीपूर्ण था। न तो पर्याप्त साधन थे और न ही इस काम का अनुभव। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
वर्मीकम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद, खेती के लिए बेहद उपयोगी मानी जाती है। यह मिट्टी को उपजाऊ बनाती है और फसल की गुणवत्ता को बेहतर करती है। जितेंद्र ने इस बात को समझा और इसे व्यवसाय में बदलने का निर्णय लिया। शुरुआत में उन्होंने कम पैमाने पर उत्पादन किया और गांव के किसानों को बेचना शुरू किया। जैसे-जैसे किसानों को उनके खाद का फायदा समझ में आया, मांग बढ़ती गई।
धीरे-धीरे जितेंद्र ने उत्पादन का दायरा बढ़ाया। उन्होंने अपने व्यवसाय को संगठित किया और इसकी मार्केटिंग पर भी ध्यान दिया। आज उनका वर्मीकम्पोस्ट प्रोजेक्ट पूरे जिले में जाना जाता है। स्थानीय किसान उनसे खाद खरीदते हैं और उनके काम की तारीफ भी करते हैं। उनकी सफलता ने कई युवाओं को भी इस व्यवसाय की ओर आकर्षित किया है।
उनकी कहानी का सबसे बड़ा सबक यह है कि उन्होंने अपनी परिस्थितियों को कभी कमजोरी नहीं माना। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने इसे अवसर में बदल दिया। जब बाकी लोग संकट के दौर में भविष्य को लेकर चिंतित थे, तब उन्होंने अपने हाथ में उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल कर नई शुरुआत की।
जितेंद्र का व्यवसाय अब सिर्फ खाद बनाने तक सीमित नहीं है। वे अब किसानों को ऑर्गेनिक खेती के महत्व और वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल के बारे में भी जागरूक कर रहे हैं। उनका मानना है कि रासायनिक खाद के लगातार इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता घट रही है और फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। ऐसे में ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल न केवल लाभकारी है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए भी बेहतर है।
उनकी यह सोच और मेहनत अब उन्हें गांव-गांव में पहचान दिला चुकी है। ग्रामीण स्तर पर ही नहीं, बल्कि राज्य के स्तर पर भी उनकी चर्चा होने लगी है। कृषि विभाग ने भी उनके काम की सराहना की है।
जितेंद्र मोहराणा का यह सफर उन युवाओं के लिए भी प्रेरणा है जो छोटे निवेश से बड़ा काम करना चाहते हैं। अक्सर लोग सोचते हैं कि व्यवसाय शुरू करने के लिए बड़ी पूंजी और बड़े संसाधनों की ज़रूरत होती है। लेकिन जितेंद्र की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि यदि लगन और मेहनत हो तो छोटे से छोटे निवेश से भी बड़ा कारोबार खड़ा किया जा सकता है।
आज उनके व्यवसाय से कई स्थानीय लोग भी जुड़े हैं। उन्होंने रोजगार के अवसर पैदा किए हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में योगदान दिया है। उनके काम से यह भी साबित होता है कि यदि सही दिशा में मेहनत की जाए तो गांवों में भी स्टार्टअप और उद्यमिता के लिए असीमित संभावनाएं मौजूद हैं।
ओडिशा के झारिगांव गांव के जितेंद्र मोहराणा की कहानी बताती है कि संकट के समय भी अवसर छिपे होते हैं। महज़ 2000 रुपये से शुरू हुआ उनका वर्मीकम्पोस्ट प्रोजेक्ट आज 30 लाख रुपये का कारोबार बन चुका है। यह न सिर्फ उनकी मेहनत और संघर्ष का परिणाम है, बल्कि देश के अन्य युवाओं और किसानों के लिए भी एक प्रेरक संदेश है कि “जीरो से हीरो” बनने का सपना हर कोई देख सकता है, बस ज़रूरत है साहस और निरंतर प्रयास की।