




सोशल मीडिया पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखने के मामले में साजिद चौधरी को हाई कोर्ट से राहत मिल गई है। न्यायमूर्ति संतोष राय की पीठ ने इस मामले में साफ कहा कि सोशल मीडिया पर व्यक्त की गई बातें सीधे तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आती हैं और उनका मूल्यांकन एक मजबूत और समझदार व्यक्ति की दृष्टि से किया जाना चाहिए, न कि कमजोर मानसिकता या पूर्वाग्रह के आधार पर।
साजिद चौधरी के खिलाफ यह मामला तब दर्ज हुआ जब उसने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसी पोस्ट साझा की थी। इसके बाद पुलिस ने देशद्रोह के आरोप में उसे गिरफ्तार किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट में अपील की गई। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सोशल मीडिया पर किए गए पोस्ट का मकसद और प्रभाव दोनों को देखा जाना चाहिए। केवल शब्दों के आधार पर देशद्रोह का आरोप लगाना न्यायसंगत नहीं है।
न्यायमूर्ति संतोष राय की पीठ ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति के विचारों या अभिव्यक्ति का मूल्यांकन हमेशा तर्क, समझदारी और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण से होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर लिखा गया हर विवादास्पद शब्द अपने आप में अपराध नहीं बनता। यदि किसी अभिव्यक्ति में वास्तविक खतरा या हिंसा का तत्व शामिल नहीं है, तो उसे सीधे देशद्रोह का नाम देना सही नहीं होगा।
इस मामले में पीठ ने यह भी ध्यान दिलाया कि सोशल मीडिया पोस्ट अक्सर भावनात्मक या मजाकिया स्वरूप में होते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि वास्तविक मंशा और प्रभाव को समझकर निर्णय लिया जाए। कोर्ट ने यह कहा कि कमजोर मानसिकता या पूर्वाग्रह के आधार पर फैसले करना उचित नहीं है।
साजिद चौधरी की ओर से पेश वकील ने अदालत में तर्क दिया कि यह पोस्ट व्यक्तिगत राय या मजाक के तौर पर की गई थी, जिसका किसी भी प्रकार का हिंसक या असामाजिक प्रभाव नहीं था। उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी और देशद्रोह का आरोप असमानुपातिक और अनुचित था। हाई कोर्ट ने इस तर्क को मानते हुए साजिद चौधरी को अदालत से बेल दे दी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून की समझदारी को बढ़ावा देता है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह संदेश दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सोच-समझकर ही कार्रवाई की जानी चाहिए और शब्दों का मूल्यांकन हमेशा वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि यदि भविष्य में किसी सोशल मीडिया पोस्ट से वास्तविक खतरनाक प्रभाव या हिंसा फैलती है, तो कानून सख्ती से कार्रवाई करेगा। यह मामला सोशल मीडिया के माध्यम से अभिव्यक्ति और कानून के बीच संतुलन को समझने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है।
साजिद चौधरी को मिली बेल के बाद अब यह मामला शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ेगा। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालत ने केवल यह सुनिश्चित किया कि गिरफ्तारी और आरोप असमानुपातिक नहीं हों, जबकि कानून की पूरी प्रक्रिया उसके खिलाफ जारी रहेगी।
इस फैसले से यह भी संकेत मिलता है कि भारतीय न्याय प्रणाली सोशल मीडिया और डिजिटल अभिव्यक्ति के मामलों में संतुलित दृष्टिकोण अपनाने लगी है। केवल शब्दों के आधार पर किसी को कठोर सजा देना अब न्यायालयों के लिए चुनौतीपूर्ण और अनुचित माना जाने लगा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला देश में डिजिटल कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मिसाल साबित होगा। यह स्पष्ट करता है कि अदालतें भावनाओं और पूर्वाग्रह के आधार पर नहीं, बल्कि वास्तविकता और न्यायसंगत दृष्टिकोण के आधार पर निर्णय लेंगी।