




आम आदमी पार्टी (AAP) ने पंजाब से राज्यसभा के लिए उद्योगपति राजिंदर गुप्ता को उम्मीदवार घोषित कर सभी को चौंका दिया है। पिछले कुछ सप्ताहों से यह अटकलें तेज थीं कि पार्टी दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को संसद के उच्च सदन में भेज सकती है। लेकिन अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी ने आखिरी समय में एक अलग ही रास्ता चुना। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब सिसोदिया का नाम लगभग तय माना जा रहा था, तब AAP ने गुप्ता को क्यों चुना? इसके पीछे पंजाब की राजनीतिक रणनीति, पार्टी की भविष्य की सोच और चुनावी समीकरण गहराई से जुड़े हुए हैं।
सिसोदिया की चर्चा और बदलता राजनीतिक समीकरण
दिल्ली में लंबे समय तक शिक्षा और वित्त मंत्री रहे मनीष सिसोदिया AAP के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक हैं। उनकी लोकप्रियता और प्रशासनिक दक्षता को देखते हुए कई राजनीतिक पर्यवेक्षक मान रहे थे कि उन्हें राज्यसभा भेजकर पार्टी दिल्ली और केंद्र स्तर पर अपनी मौजूदगी मजबूत करेगी। हालांकि, सिसोदिया के खिलाफ चल रहे शराब नीति मामले में कानूनी कार्यवाही और राजनीतिक विवादों ने इस निर्णय को जटिल बना दिया।
AAP के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार, पार्टी नहीं चाहती थी कि राज्यसभा नामांकन किसी विवाद या अदालत के मामले की छाया में फंस जाए। इससे पार्टी की साफ-सुथरी छवि पर असर पड़ सकता था। साथ ही पंजाब इकाई ने भी यह स्पष्ट संकेत दिए कि दिल्ली के नेताओं को पंजाब से भेजना स्थानीय नेतृत्व के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकता है। इन परिस्थितियों में पार्टी को एक “लोकल और स्वच्छ छवि” वाले चेहरे की जरूरत थी, जो पंजाब के आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को समझता हो।
राजिंदर गुप्ता: उद्योग से राजनीति तक का सफर
राजिंदर गुप्ता पंजाब के सबसे चर्चित उद्योगपतियों में गिने जाते हैं। वे ट्राइडेंट ग्रुप के चेयरमैन हैं, जो टेक्सटाइल, पेपर और केमिकल जैसे क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर कार्यरत है। उनकी अनुमानित संपत्ति एक अरब डॉलर से अधिक बताई जाती है। वे लंबे समय से सामाजिक कार्यों और औद्योगिक विकास से जुड़े रहे हैं।
AAP ने गुप्ता को चुनकर यह संदेश दिया है कि पार्टी अब केवल आंदोलन और नीतियों की राजनीति नहीं करेगी, बल्कि आर्थिक विशेषज्ञता और विकास मॉडल पर भी ध्यान देगी। गुप्ता का नामांकन यह दिखाता है कि पार्टी पंजाब को उद्योग और निवेश के केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहती है।
राजिंदर गुप्ता पहले पंजाब राज्य आर्थिक नीति एवं योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्होंने कुछ समय पहले इस पद से इस्तीफा दिया था, जिससे यह संकेत मिल गया था कि वे अब राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने जा रहे हैं। उनका चयन न केवल औद्योगिक क्षेत्र में पार्टी की पकड़ मजबूत करेगा, बल्कि यह भी दर्शाता है कि AAP अब “नीति आधारित नेतृत्व” की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है।
पंजाब चुनाव 2027 की तैयारी की झलक
पंजाब आम आदमी पार्टी का एकमात्र राज्य है जहाँ वह पूर्ण बहुमत से सरकार चला रही है। इसलिए 2027 के विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए “साख की परीक्षा” होंगे। विपक्षी दलों – कांग्रेस, बीजेपी और अकाली दल – ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे में राज्यसभा के जरिए पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अब से ही अपनी रणनीति को मजबूत करना चाहती है।
राजिंदर गुप्ता जैसे नाम को आगे लाने से AAP पंजाब में “गैर-राजनीतिक और विकास केंद्रित” छवि बनाना चाहती है। यह कदम पार्टी को मध्यम वर्ग और व्यापारिक वर्ग के बीच समर्थन बढ़ाने में मदद करेगा। वहीं सिसोदिया जैसे विवादित नाम को न चुनने से पार्टी विपक्ष को अनावश्यक हमलों का मौका नहीं देगी।
AAP का यह भी मानना है कि उद्योग जगत से जुड़े व्यक्ति के संसद में आने से पंजाब के निवेश माहौल को बेहतर संदेश मिलेगा। इससे राज्य में रोजगार, स्टार्टअप और MSME क्षेत्र को नई दिशा मिल सकती है।
राजनीतिक संदेश और राष्ट्रीय रणनीति
राजिंदर गुप्ता का चयन सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं है। यह एक राष्ट्रीय संदेश भी है कि AAP अब आर्थिक दृष्टि से सक्षम नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है। पार्टी चाहती है कि वह खुद को सिर्फ “आंदोलनकारी दल” की छवि से बाहर निकाले और एक ऐसी पार्टी के रूप में पेश करे जो शासन, नीति और विकास की भाषा समझती हो।
इसके साथ ही यह निर्णय AAP के अंदरूनी शक्ति-संतुलन को भी दिखाता है। दिल्ली इकाई से ज्यादा अब पंजाब इकाई को तरजीह दी जा रही है। मुख्यमंत्री भगवंत मान की भूमिका पिछले कुछ महीनों में मजबूत हुई है और गुप्ता की उम्मीदवारी को उनका भी समर्थन माना जा रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि पंजाब में पार्टी का नियंत्रण अब स्थानीय नेतृत्व के हाथों में केंद्रित हो रहा है।
AAP का भरोसा और विपक्ष की प्रतिक्रिया
AAP के पास पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से 93 सीटें हैं, इसलिए गुप्ता की राज्यसभा में जीत लगभग तय मानी जा रही है। पार्टी नेतृत्व ने इस फैसले को “भविष्य की राजनीति और विकास की दिशा में कदम” बताया है। दूसरी ओर, कांग्रेस और अकाली दल इस निर्णय को AAP की “पूंजीवादी झुकाव” बताकर निशाना साध रहे हैं।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम AAP को व्यावहारिक राजनीति के करीब लाता है। पार्टी ने पिछले एक साल में जिन चुनौतियों का सामना किया है — खासकर केजरीवाल और सिसोदिया के कानूनी मामलों के बाद — उसे देखते हुए यह बदलाव जरूरी था।
राजिंदर गुप्ता जैसे कारोबारी चेहरे से पार्टी को उम्मीद है कि वह पंजाब में उद्योग और रोजगार की नीतियों को नया आयाम दे सकेगी। साथ ही यह कदम दिल्ली की राजनीति से दूर, एक “स्थानीय विकास एजेंडा” को केंद्र में रखता है।