




मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पुरातत्व प्रेमियों के लिए एक बड़ी खोज हुई है। दमोह जिले के दोनी गांव में चल रही खुदाई के दौरान शोधकर्ताओं और पुरातत्व विभाग की टीम ने 10वीं और 11वीं सदी की पत्थर की तराशी हुई प्रतिमाओं का अनावरण किया है। इस खोज को इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
खुदाई में अब तक दर्जनों प्रतिमाएं मिली हैं, जिनमें ‘त्रिदेव’ की अद्वितीय मूर्तियां, अर्धनारीश्वर, हाथियों और अप्सराओं की उत्कृष्ट कलाकृतियां शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये प्रतिमाएं कल्चुरीकाल की स्थापत्य और मूर्तिकला शैली की बेहतरीन मिसाल हैं। इन कलाकृतियों में उस युग की धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक संरचना और कला के विविध पहलुओं को देखा जा सकता है।
पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र में खुदाई से पहले इतिहासकारों और स्थानीय ग्रामीणों ने कई पुरानी कहानियों और लोककथाओं का हवाला दिया था। इन कथाओं में दोनी गांव और आसपास के क्षेत्रों में प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों की जानकारी मिली थी, जो अब खुदाई में प्रमाणित हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि त्रिदेव की मूर्तियों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उत्कृष्ट शिल्प कला दिखाई देती है। इसके अलावा, अर्धनारीश्वर की मूर्तियां उस समय की सामाजिक और धार्मिक समझ को दर्शाती हैं, जिसमें पुरुष और महिला का संतुलन और प्रकृति की शक्ति को प्रतिमाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। हाथियों और अप्सराओं की मूर्तियां कल्चुरीकाल के समय की प्राचीन स्थापत्य कला में जीवन्तता और सौंदर्य का प्रतीक हैं।
स्थानीय इतिहासकारों का मानना है कि यह खजाना बुंदेलखंड के कल्चुरीकालीन इतिहास की समझ को और गहरा करेगा। उन्होंने कहा कि इन मूर्तियों से न केवल उस युग की धार्मिक गतिविधियों का पता चलता है, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में कला और संस्कृति कितनी विकसित थी।
खुदाई के दौरान मिली पत्थर की प्रतिमाओं में विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि उन्हें सुरक्षित रखा जाए और उनकी रक्षा के लिए स्थायी संरचनाओं का निर्माण किया जाए। पुरातत्व विभाग ने बताया कि भविष्य में इन कलाकृतियों को संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे शोधकर्ता और आम जनता दोनों इस ऐतिहासिक विरासत का अध्ययन कर सकें।
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि यह खोज मध्य भारत की पुरातात्विक धरोहर को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्रदान करती है। यह खजाना यह भी दर्शाता है कि बुंदेलखंड क्षेत्र सिर्फ ऐतिहासिक युद्धों और किलों के लिए ही नहीं बल्कि कला और संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है।
स्थानीय ग्रामीणों ने भी इस खोज में उत्सुकता दिखाई और स्वयंसेवक के रूप में खुदाई में सहयोग किया। उनका कहना है कि यह क्षेत्र उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है और इस तरह की खोज ने उनके इतिहास के प्रति गर्व बढ़ाया है।
पुरातत्व विशेषज्ञों ने कहा कि इस प्रकार की खोजें हमें यह याद दिलाती हैं कि हमारे देश में कितनी समृद्ध और विविध सांस्कृतिक धरोहर मौजूद है। यह खजाना मध्य भारत में कल्चुरीकालीन संस्कृति और धार्मिक जीवन के अध्ययन के लिए अमूल्य स्रोत साबित होगा।
इस खोज के बाद राज्य सरकार और केंद्र सरकार भी इस क्षेत्र की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कदम उठा सकती हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस खजाने को केवल संग्रहालय तक सीमित न रखा जाए बल्कि इसे डिजिटल माध्यमों से भी उपलब्ध कराया जाए, ताकि देश और दुनिया भर के इतिहासकार और छात्र इसका लाभ उठा सकें।
इस तरह बुंदेलखंड के दमोह जिले में मिले 1000 साल पुराने पुरातत्व खजाने ने इतिहास और कला प्रेमियों को रोमांचित कर दिया है। यह खोज न केवल मध्य भारत के प्राचीन कल्चुरीकाल की सांस्कृतिक संपन्नता को उजागर करती है, बल्कि आने वाले वर्षों में अनुसंधान और पर्यटन के नए अवसर भी पैदा करेगी।