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भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों के लिए एक राहत भरी खबर सामने आई है। मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने म्यूचुअल फंड उद्योग में फीस और चार्जेज कम करने का प्रस्ताव रखा है, जिससे करोड़ों निवेशकों को सीधा फायदा होगा। इस प्रस्ताव के तहत, सेबी ने म्यूचुअल फंड स्कीमों के एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio) यानी फंड मैनेजमेंट फीस की सीमा को घटाने का सुझाव दिया है।
सेबी ने इस संबंध में एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया है और 17 नवंबर तक आम जनता, उद्योग विशेषज्ञों और म्यूचुअल फंड कंपनियों से सुझाव मांगे हैं। इसका उद्देश्य म्यूचुअल फंड्स की लागत को पारदर्शी और निवेशक-हितैषी बनाना है।
म्यूचुअल फंड उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की है। अगस्त 2025 तक भारत में म्यूचुअल फंड एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 58 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। हर महीने करीब 2 करोड़ से ज्यादा निवेशक SIP (Systematic Investment Plan) के जरिए निवेश कर रहे हैं। इस बढ़ती लोकप्रियता के बीच, निवेशकों पर लगने वाली एक्सपेंस फीस को लेकर लंबे समय से पारदर्शिता की मांग उठ रही थी।
सेबी के अनुसार, मौजूदा व्यवस्था में म्यूचुअल फंड हाउस (AMC) अलग-अलग स्कीमों के हिसाब से निवेशकों से शुल्क लेते हैं, जिसे टोटल एक्सपेंस रेश्यो (TER) कहा जाता है। इसमें फंड मैनेजमेंट फीस, मार्केटिंग खर्च, ब्रोकरेज और अन्य प्रशासनिक लागतें शामिल होती हैं। लेकिन सेबी को यह लगा कि कई फंड हाउस इन शुल्कों को अधिक दर पर वसूल रहे हैं, जिससे निवेशकों के वास्तविक रिटर्न पर असर पड़ता है।
सेबी के प्रस्ताव के मुताबिक, अब सभी म्यूचुअल फंड हाउसों को एक “यूनिफाइड कॉस्ट स्ट्रक्चर” अपनाना होगा। यानी, चाहे निवेशक किसी भी स्कीम में पैसा लगाए, फीस एक समान तरीके से तय होगी। इस प्रस्ताव का मकसद “फंड टू फंड कॉस्टिंग” को खत्म करना है, जिससे डुप्लिकेट चार्जिंग न हो।
सेबी का मानना है कि अगर एक्सपेंस रेश्यो कम किया जाता है, तो निवेशकों को लंबे समय में ज्यादा रिटर्न मिलेगा। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी स्कीम का एक्सपेंस रेश्यो 2% है और निवेश पर औसत सालाना रिटर्न 10% है, तो वास्तविक रिटर्न 8% होता है। लेकिन अगर यह शुल्क घटकर 1.5% कर दिया जाए, तो निवेशक को सीधे 0.5% अतिरिक्त रिटर्न मिल सकता है।
निवेश विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम निवेशकों के हित में है। फाइनेंशियल प्लानर अभिषेक अग्रवाल ने कहा, “सेबी का यह कदम लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित होगा। यह निवेशकों को अधिक पारदर्शिता देगा और फंड हाउसों को प्रतिस्पर्धा में सुधार के लिए प्रेरित करेगा।”
सेबी ने अपने कंसल्टेशन पेपर में कहा है कि उसने पिछले कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड्स के चार्जिंग पैटर्न की समीक्षा की है। पाया गया कि कई बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनियां छोटे निवेशकों से अपेक्षाकृत अधिक शुल्क लेती हैं, जबकि बड़ी संस्थागत निवेशकों को छूट दी जाती है। इस असंतुलन को दूर करने के लिए सेबी ने फीस स्ट्रक्चर को “फेयर एंड इक्वल” बनाने का प्रस्ताव रखा है।
सेबी ने यह भी कहा कि छोटे निवेशकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और अब भारत में 6 करोड़ से अधिक म्यूचुअल फंड फोलियो सक्रिय हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि फीस व्यवस्था ऐसी हो जो निवेशकों के हितों की रक्षा करे और “लॉन्ग-टर्म वेल्थ क्रिएशन” को प्रोत्साहित करे।
निवेश उद्योग की ओर से भी इस प्रस्ताव का स्वागत किया गया है, हालांकि कुछ कंपनियों ने यह चिंता जताई है कि इससे उनकी रेवेन्यू मार्जिन पर असर पड़ सकता है। म्यूचुअल फंड एसोसिएशन ऑफ इंडिया (AMFI) ने कहा है कि वे सेबी के साथ मिलकर एक संतुलित ढांचा बनाने की दिशा में काम करेंगे जिससे निवेशकों और उद्योग दोनों को लाभ हो।
इससे पहले, सेबी ने साल 2018 और 2020 में भी एक्सपेंस रेश्यो में कटौती की थी, जिससे निवेशकों को काफी फायदा हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे फंड हाउसों का आकार और AUM बढ़ा, उन्होंने फिर से विभिन्न चार्जेज बढ़ा दिए। अब यह प्रस्ताव एक बार फिर से इस अनुशासन को बहाल करने की दिशा में कदम माना जा रहा है।
सेबी के इस प्रस्ताव से निवेशकों में लॉन्ग-टर्म SIP निवेश की लोकप्रियता और बढ़ सकती है। क्योंकि जब एक्सपेंस रेश्यो घटेगा, तो समय के साथ निवेश पर मिलने वाला वास्तविक लाभ बढ़ेगा। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति 20 साल तक हर महीने ₹10,000 का SIP करता है, तो 0.5% फीस में कमी से ही उसे अंत में ₹5 से ₹7 लाख तक अतिरिक्त लाभ मिल सकता है।
रिटेल निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए सेबी ने हाल ही में कई कदम उठाए हैं — जैसे ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, पारदर्शी परफॉर्मेंस रिपोर्टिंग और “रिस्क मेट्रिक सिस्टम” लागू करना। एक्सपेंस रेश्यो में यह संभावित बदलाव उसी सुधार प्रक्रिया का हिस्सा है।
वित्त विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो 2026 तक भारत में म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या 10 करोड़ के पार पहुंच सकती है। इससे न केवल निवेश संस्कृति को बल मिलेगा बल्कि देश के कैपिटल मार्केट्स में स्थिरता और पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
सेबी का यह कदम भारत को एक विकसित निवेशक-अनुकूल बाजार बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह न सिर्फ आम निवेशकों के लिए राहत का संदेश है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय वित्तीय नियामक संस्था अब छोटे निवेशकों के हितों को प्राथमिकता दे रही है।
अब देखना यह होगा कि 17 नवंबर तक सेबी को मिलने वाले सुझावों के आधार पर यह प्रस्ताव कितना बदलता है और अंतिम रूप में कब लागू होता है। लेकिन एक बात तय है — अगर यह नियम लागू हुआ, तो म्यूचुअल फंड निवेश अब और अधिक किफायती और भरोसेमंद बन जाएगा।








