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गुजरात में हाल के दिनों में हुई बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़ दी है। खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं, और कई जिलों में किसान भारी नुकसान से जूझ रहे हैं। ऐसे में विपक्ष लगातार राज्य सरकार पर किसानों की अनदेखी का आरोप लगा रहा है। इसी कड़ी में अब आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक चैतर वसावा ने गुजरात के नए आदिवासी मंत्री नरेश पटेल पर बड़ा हमला बोला है।
चैतर वसावा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट करते हुए लिखा —
“सीएम साहब… मंत्री जी किसानों के नुकसान का आकलन करने गए हैं या फोटो शूट कराने? उनके साथ 10 कैमरामैन घूम रहे हैं। क्या यही संवेदनशीलता है किसानों के प्रति?”
वसावा ने यह बयान तब दिया जब नरेश पटेल बेमौसम बारिश से प्रभावित आदिवासी इलाकों के दौरे पर थे। पटेल को मुख्यमंत्री द्वारा यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे नुकसान का जायजा लें और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपें। लेकिन वसावा का आरोप है कि मंत्री ने इस दौरे को एक प्रचार अभियान में बदल दिया।
चैतर वसावा, जो खुद भरूच जिले की झगडिया विधानसभा सीट से विधायक हैं और आदिवासी समुदाय से आते हैं, ने कहा कि सरकार किसानों के दर्द से ज्यादा अपनी छवि सुधारने में जुटी है। उन्होंने कहा,
“जिन खेतों में किसानों की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं, वहां मंत्रीजी फोटोग्राफरों की फौज लेकर पहुंच रहे हैं। उन्हें किसानों की आंखों के आंसू नहीं दिख रहे, बस कैमरे के सामने दिखावा करना है।”
इस बयान के बाद गुजरात की राजनीति में हलचल मच गई है। सत्तारूढ़ भाजपा ने वसावा के आरोपों को “राजनीतिक स्टंट” करार दिया है। भाजपा प्रवक्ता हर्षद पटेल ने कहा कि नरेश पटेल एक जिम्मेदार मंत्री हैं और उन्होंने अपने विभाग के अधिकारियों के साथ हर जिले का जायजा लिया है। उन्होंने कहा,
“विपक्ष को काम की आलोचना करनी चाहिए, न कि किसी के दौरे का मजाक उड़ाना चाहिए। मंत्री जी अपने क्षेत्र के किसानों से सीधे मिल रहे हैं और हर संभव मदद का भरोसा दिला रहे हैं।”
हालांकि विपक्ष अपने रुख पर कायम है। कांग्रेस और आप दोनों ही पार्टियों का कहना है कि किसानों को अब तक सरकार से 100 प्रतिशत मुआवजे का वादा नहीं मिला है। वसावा ने कहा कि मुख्यमंत्री को तत्काल राहत पैकेज की घोषणा करनी चाहिए ताकि छोटे किसानों को कर्ज और फसल नुकसान के बोझ से राहत मिले।
गुजरात के आदिवासी बहुल इलाकों — नर्मदा, भरूच, दाहोद और तापी — में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। धान, अरहर और मूंग की फसलें चौपट हो गई हैं। राज्य के कृषि विभाग ने शुरुआती रिपोर्ट में नुकसान का अनुमान 1500 करोड़ रुपये से अधिक बताया है, जबकि विपक्ष का कहना है कि असल नुकसान इससे कहीं ज्यादा है।
इस बीच नरेश पटेल ने खुद वसावा के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनका मकसद केवल किसानों की मदद करना है, प्रचार नहीं। उन्होंने कहा,
“मैंने व्यक्तिगत रूप से कई गांवों का दौरा किया है। मीडिया और कैमरे प्रशासन की डाक्यूमेंटेशन प्रक्रिया का हिस्सा हैं, न कि किसी शो का। विपक्ष को राजनीति करने की बजाय किसानों की मदद में हाथ बढ़ाना चाहिए।”
राज्य सरकार ने भी दावा किया है कि फसल बीमा योजना और आपदा राहत कोष के तहत किसानों को जल्द मुआवजा दिया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे एक सप्ताह के भीतर सभी जिलों की रिपोर्ट सौंपें।
फिलहाल, गुजरात में किसानों के मुद्दे पर सियासत गर्म है। एक ओर जहां सरकार राहत की प्रक्रिया में जुटी है, वहीं विपक्ष इसे किसानों के प्रति “सरकारी उदासीनता” बताकर आक्रामक रुख अपना रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चैतर वसावा का हमला केवल मंत्री नरेश पटेल पर नहीं, बल्कि सरकार की समग्र नीतियों पर निशाना है। आदिवासी समुदाय में उनका प्रभाव मजबूत है, और आने वाले समय में यह विवाद सत्ताधारी दल के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है।
गुजरात की राजनीति में यह बयानबाजी भले ही नई न हो, लेकिन इस बार यह मुद्दा किसानों के संकट से जुड़ा है। ऐसे में जनता यह उम्मीद कर रही है कि राजनीति से पहले राहत और सहायता पर ध्यान दिया जाएगा — क्योंकि राज्य के किसान इस वक्त राहत के इंतजार में हैं, न कि फोटो शूट के।







