




ईरान पर बम गिराने के बाद अब डोनाल्ड ट्रंप उसकी तारीफ क्यों कर रहे हैं? नाटो समिट में दिए बयान से दुनिया हैरान, अमेरिका की विदेश नीति पर उठे सवाल।
अमेरिका के डैडी ट्रंप का बदला रुख
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्हें अब नाटो चीफ मार्क रुटे ने “डैडी” की उपाधि दे दी है, अचानक ईरान के प्रति नरम रुख अपना चुके हैं। कुछ ही दिन पहले तक जिस ईरान को अमेरिका का दुश्मन नंबर-1 बताया जा रहा था, अब उसी की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं।
नाटो समिट से लौटने के बाद व्हाइट हाउस ने कहा — “डैडी इज़ होम!” लेकिन जिस तरह से ट्रंप ने नाटो बैठक में ईरान को लेकर बयान दिया, उससे राजनयिक जगत में गहरी उलझन पैदा हो गई है।
पहले किया हमला…
कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने इजरायल के साथ मिलकर ऑपरेशन मिडनाइट हैमर चलाया था, जिसमें ईरान के परमाणु संयंत्रों — फोर्डो, नतांज और इस्फहान — पर बंकर बस्टर बम गिराए गए थे। दावा किया गया कि ये हमले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पंगु बना देंगे।
…और अब की तारीफ
लेकिन अब जब सीजफायर हो चुका है, ट्रंप कह रहे हैं: “ईरान ने जंग में बहादुरी दिखाई। वह तेल बेचते हैं, यह उनका हक है। अगर चीन भी ईरान से तेल खरीदे तो भी अमेरिका को कोई दिक्कत नहीं।”
यह बयान अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति से पूरी तरह उलट है।
आखिर ट्रंप चाहते क्या हैं?
इस सवाल का जवाब ट्रंप के एक पुराने बयान से मिलता है जिसमें उन्होंने कहा था:
“अगर चीन ईरान से तेल खरीदे, लेकिन साथ में अमेरिका से भी खरीदे, तो हम सबके लिए बेहतर होगा।”
यानी ट्रंप अब बिजनेस मॉडल में सोच रहे हैं — दुश्मन हो या दोस्त, बस मुनाफा होना चाहिए। उनके लिए अब “अमेरिका फर्स्ट” का मतलब तेल बिक्री में फर्स्ट होना रह गया है।
ईरान की ताकत ने बदला मन?
१. विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका को यह एहसास हो गया है कि ईरान को हल्के में लेना घातक हो सकता है।
२. ईरान के खिलाफ हमले में उसे सैन्य तौर पर पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सका।
३. साथ ही, अमेरिका को डर है कि कहीं ईरान और चीन की बढ़ती नजदीकियां उसके आर्थिक हितों को नुकसान न पहुंचा दें।
४. इसी वजह से शायद ट्रंप ने मीटिंग की इच्छा जताई है — ताकि तनाव कम हो और व्यापार बढ़े।
अब आगे क्या होगा?
ईरान ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह अमेरिका से बात करेगा या नहीं। लेकिन उसने इतना जरूर कहा है कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को नहीं रोकेगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप की “बिजनेस डिप्लोमेसी” ईरान पर असर डाल पाती है या नहीं।
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