




बिहार की राजनीति में जाति का समीकरण अब तक सबसे निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। हर चुनाव में उम्मीदवार की जीत या हार इस बात पर निर्भर रही है कि उसके जातीय वोट बैंक की मजबूती कितनी है। लेकिन इस बार तस्वीर कुछ अलग नजर आ रही है। ज्ञान और मोक्ष की नगरी बोधगया, जो दुनिया भर में बौद्ध दर्शन और आध्यात्मिकता का प्रतीक मानी जाती है, वहां के मतदाता अब जाति से ऊपर उठकर नए मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों से बात करने पर यह साफ झलकता है कि अब जनता विकास, रोजगार और सामाजिक सुधारों पर ध्यान दे रही है। यह बदलाव न केवल बोधगया, बल्कि पूरे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है।
शराबबंदी बना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
जब बोधगया के बाजार में दुकानदारों और व्यापारियों से बातचीत की गई, तो एक कारोबारी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“इस बार तो मैं और मेरे सभी दोस्त जन स्वराज पार्टी को वोट देंगे। वजह है शराबबंदी।”
उनका कहना था कि राज्य सरकार की शराबबंदी नीति के बाद भले कई दिक्कतें आई हों, लेकिन समाज पर इसका सकारात्मक असर दिखा है। लोगों के घरों में झगड़े कम हुए हैं, दुर्घटनाएं घटी हैं, और युवाओं में जागरूकता बढ़ी है।
हालांकि, यह भी सच है कि शराबबंदी ने अवैध व्यापार को बढ़ावा दिया है, लेकिन जनता मानती है कि नीति की मंशा सही थी — और जिन दलों ने इसे मजबूती से लागू किया, उन्हें इसका राजनीतिक लाभ मिलना चाहिए।
जन स्वराज पार्टी इस मुद्दे को अपने मुख्य एजेंडे के रूप में उठा रही है। पार्टी का कहना है कि वह न केवल शराबबंदी को सख्ती से लागू करेगी, बल्कि साथ ही रोजगार और शिक्षा के अवसर बढ़ाकर लोगों को बेहतर विकल्प भी देगी।
जाति नहीं, काम की बात कर रही है जनता
बोधगया के आसपास के गांवों — डोभी, टेकारी और फतेहपुर — में लोगों से बात करने पर यह समझ में आता है कि अब जनता जातीय पहचान की बजाय काम और नीतियों को ज्यादा महत्व दे रही है।
एक शिक्षक ने कहा, “पहले हम अपनी जाति देखकर वोट देते थे, अब अपने बच्चों के भविष्य को देखकर देंगे।”
यह बयान उस सोच में बदलाव का प्रतीक है, जो बिहार की राजनीति में नई दिशा दिखा सकता है।
जहां पहले यादव, ब्राह्मण, कुशवाहा, पासवान जैसी जातियों का वोट बैंक तय करता था कि कौन जीतेगा, अब वही लोग पूछ रहे हैं — “किसने गांव में सड़क बनाई, बिजली दी, और स्कूल सुधारे?”
बोधगया में जन स्वराज पार्टी क्यों उभर रही है?
बोधगया विधानसभा सीट पर पारंपरिक पार्टियां जैसे राजद (RJD) और जदयू (JDU) लंबे समय से अपना प्रभाव बनाए हुए थीं। लेकिन इस बार जन स्वराज पार्टी की सक्रियता ने मुकाबले को रोचक बना दिया है।
पार्टी ने स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखा है — जैसे पर्यटन को बढ़ावा देना, बुद्ध सर्किट का विस्तार, किसानों के लिए सिंचाई की सुविधा, और युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ना।
जन स्वराज पार्टी के स्थानीय नेता का कहना है,
“हम जाति नहीं, काम की राजनीति कर रहे हैं। हमारे एजेंडे में विकास, शिक्षा और महिला सुरक्षा सबसे ऊपर है।”
यह बात स्थानीय युवाओं को भी प्रभावित कर रही है, जो अब जाति आधारित दलों से निराश हैं। बोधगया के युवाओं का कहना है कि उन्हें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो रोजगार और अवसर की बात करे, न कि सिर्फ जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगे।
पर्यटन और विकास पर भी चर्चा तेज
बोधगया विश्व धरोहर स्थल है और हर साल लाखों विदेशी पर्यटक यहां आते हैं। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन से होने वाली आय का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचता। सड़कें अब भी खराब हैं, रोजगार के अवसर सीमित हैं और कई पर्यटन केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है।
एक गेस्टहाउस संचालक ने कहा,
“यहां लाखों विदेशी आते हैं, लेकिन हमारे बच्चों के पास नौकरी नहीं है। अगर सरकार ने पर्यटन से जुड़ी योजनाओं को सही तरह से लागू किया होता, तो यहां हर घर में रोजगार होता।”
जन स्वराज पार्टी ने अपने घोषणापत्र में बोधगया को “स्पिरिचुअल टूरिज्म हब” बनाने का वादा किया है। इसके तहत नए होटल, गाइड ट्रेनिंग प्रोग्राम और स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देने की योजना है।
महिलाओं की आवाज़: बदलाव की असली ताकत
बोधगया में महिलाएं भी इस राजनीतिक परिवर्तन की मजबूत धुरी बनती दिख रही हैं। वे अब खुलकर अपनी राय रख रही हैं और राजनीतिक बहसों में शामिल हो रही हैं।
शराबबंदी ने उन्हें समाज में एक नई ताकत दी है। एक महिला ने कहा,
“पहले घर का सारा पैसा शराब में चला जाता था, अब बच्चों की पढ़ाई में लग रहा है। हम उसी को वोट देंगे जो इस बदलाव को कायम रखे।”
यह साफ संकेत है कि महिला मतदाता इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
बिहार की राजनीति में नया अध्याय?
बोधगया की यह बदलती राजनीतिक हवा यह इशारा दे रही है कि बिहार की राजनीति धीरे-धीरे अपने पुराने ढर्रे से बाहर आ रही है। जातिवाद, वंशवाद और धर्म आधारित राजनीति की जगह अब विकास, सामाजिक सुधार और सुशासन की बात हो रही है।
अगर बोधगया का यह रुझान पूरे बिहार में फैलता है, तो यह राज्य की राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव साबित हो सकता है।
लोग अब यह समझ चुके हैं कि जाति से ऊपर उठकर ही विकास संभव है।