• Create News
  • Nominate Now

    महाराष्ट्र में झींगा, बांगड़ा, बॉम्बे डक जैसी छोटी मछलियां पकड़ने पर बैन — सरकार ने तय की नई न्यूनतम लंबाई, जानिए पूरा नियम

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं।

    महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के मत्स्य उद्योग से जुड़ा एक अहम फैसला लिया है, जो सीधे तौर पर समुद्री पारिस्थितिकी और मछली पालन व्यवसाय से जुड़े लाखों लोगों को प्रभावित करेगा। सरकार ने झींगा, सिल्वर पॉम्फ्रेट, बांगड़ा, बॉम्बे डक और अन्य लोकप्रिय समुद्री प्रजातियों की “न्यूनतम लंबाई” तय कर दी है, जिसके बाद इस सीमा से छोटी मछलियों को पकड़ना, बेचना या बाजार में लाना पूरी तरह प्रतिबंधित होगा।

    यह निर्णय केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है। सरकार का मानना है कि छोटी यानी कच्ची मछलियों का बड़े पैमाने पर शिकार न केवल समुद्री जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इससे आने वाले वर्षों में मछलियों की प्रजनन क्षमता भी गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।

    राज्य मत्स्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, समुद्र में कई मछली प्रजातियां पकने और अंडे देने से पहले ही बड़ी संख्या में पकड़ ली जाती हैं। इससे उनके जीवन चक्र पर असर पड़ता है और आने वाले वर्षों में इन प्रजातियों की संख्या तेजी से घट सकती है। इसे रोकने के लिए सरकार ने अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया है और हर प्रमुख मछली प्रजाति के लिए न्यूनतम आकार तय किया है।

    उदाहरण के तौर पर, बांगड़ा (Mackerel) को कम से कम 20 सेंटीमीटर लंबा होने पर ही पकड़ा जा सकेगा। इसी तरह, सिल्वर पॉम्फ्रेट (White Pomfret) के लिए न्यूनतम लंबाई 17 सेंटीमीटर तय की गई है। झींगा (Prawn) की विभिन्न प्रजातियों के लिए भी अलग-अलग मानक बनाए गए हैं। यदि मछुआरे या व्यापारी इस नियम का उल्लंघन करते हैं, तो उन पर जुर्माना, लाइसेंस रद्दीकरण या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

    सरकार के मत्स्य विभाग ने यह भी कहा है कि यह कदम केवल मछुआरों को रोकने के लिए नहीं, बल्कि समुद्री पारिस्थितिकी के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए उठाया गया है। अधिकारी बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में महाराष्ट्र के तटीय इलाकों — खासकर पालघर, रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग में — मछलियों की संख्या में तेज गिरावट दर्ज की गई है। इसके पीछे मुख्य कारण था कि बड़ी संख्या में मछुआरे छोटी मछलियों को पकड़कर बाजार में बेचने लगे थे, जिससे मछलियों को प्रजनन का अवसर नहीं मिल पा रहा था।

    केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह नीति “सस्टेनेबल फिशिंग” (Sustainable Fishing) की दिशा में एक बड़ा कदम है। CMFRI के विशेषज्ञों ने कहा कि जब मछलियों को उनके पूरे आकार तक बढ़ने का अवसर दिया जाएगा, तो वे अधिक अंडे दे पाएंगी और समुद्र में उनकी संख्या संतुलित बनी रहेगी। इससे आने वाले वर्षों में मछुआरों की आय भी स्थिर रहेगी।

    महाराष्ट्र सरकार ने इस नियम को लागू करने के लिए मत्स्य विभाग, कोस्ट गार्ड, और स्थानीय मछुआरा समितियों के सहयोग से एक निगरानी व्यवस्था भी बनाई है। तटीय इलाकों में गश्त के दौरान अगर किसी नाव या ट्रॉलर में छोटे आकार की मछलियां पाई गईं, तो तुरंत कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, मछुआरों को जागरूक करने के लिए विशेष प्रशिक्षण और वर्कशॉप भी आयोजित की जा रही हैं।

    सरकार के मुताबिक, यह फैसला केवल समुद्र से मछली पकड़ने पर ही नहीं, बल्कि बाजारों में बिक्री और परिवहन पर भी लागू होगा। यानी अगर कोई व्यापारी या विक्रेता न्यूनतम लंबाई से छोटी मछलियों को बेचते हुए पाया गया, तो उसे भी कानूनी दंड भुगतना होगा।

    मत्स्य उद्योग से जुड़े कई विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। उनका कहना है कि लंबे समय से इस तरह के वैज्ञानिक नियमों की जरूरत महसूस की जा रही थी। हालांकि, कुछ मछुआरा संघों ने चिंता जताई है कि इस नियम से शुरुआती दिनों में उनकी आय पर असर पड़ेगा। इस पर सरकार ने आश्वासन दिया है कि मछुआरों को वैकल्पिक रोजगार योजनाओं और सब्सिडी के माध्यम से सहयोग दिया जाएगा, ताकि उन्हें किसी तरह की आर्थिक परेशानी का सामना न करना पड़े।

    एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह नियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनाए गए “Marine Fisheries Regulation Act” के अनुरूप है, और इससे महाराष्ट्र को मत्स्य पालन के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक जिम्मेदार राज्य के रूप में पहचान मिलेगी।

    इस कदम के लागू होने के बाद उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र के तटीय इलाकों में मछलियों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में सुधार देखने को मिलेगा। साथ ही, मछुआरों की आमदनी में भी दीर्घकालिक बढ़ोतरी होगी क्योंकि बड़े आकार की मछलियों की बाजार कीमत हमेशा अधिक रहती है।

    सरकार का यह फैसला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि किस तरह वैज्ञानिक शोध, नीति निर्माण और पर्यावरण संरक्षण एक साथ आकर समुद्री जीवन को सुरक्षित बना सकते हैं। महाराष्ट्र के तटीय समुदायों के लिए यह परिवर्तन चुनौतीपूर्ण जरूर होगा, लेकिन लंबी अवधि में यह उनके और समुद्र दोनों के हित में साबित होगा।

    न्यूज़ शेयर करने के लिए क्लिक करें .
  • Advertisement Space

    Related Posts

    मिजोरम में आंतरिक रेखा परमिट उल्लंघन के आरोप में 36 लोगों को हिरासत में लिया गया, सुरक्षा व्यवस्था कड़ी

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं। मिजोरम में आंतरिक रेखा परमिट (ILP) नियमों के उल्लंघन के आरोप में 36 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस…

    Continue reading
    जापान ओपन स्क्वैश: जोशना चिनप्पा ने मिस्र की हाया अली को हराकर जीता अपना 11वां PSA टाइटल

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं। भारतीय महिला स्क्वैश स्टार जोशना चिनप्पा ने जापान ओपन में एक शानदार प्रदर्शन करते हुए मिस्र की तीसरे सीड हाया…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *