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कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Siddaramaiah) ने यह कहकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज कर दी है कि वह 2028 के विधानसभा चुनाव में भी मैदान में उतरेंगे। उनके इस बयान ने न केवल कांग्रेस के भीतर नई हलचल पैदा कर दी है, बल्कि विपक्षी दलों में भी रणनीति को लेकर हलचल बढ़ा दी है।
दरअसल, सिद्धारमैया की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार मई 2023 में सत्ता में आई थी और अब सरकार के डेढ़ साल से ज्यादा कार्यकाल पूरे हो चुके हैं। जैसे-जैसे ढाई साल पूरे होने का वक्त नजदीक आ रहा है, कांग्रेस के अंदर सत्ता संतुलन को लेकर चर्चाएं तेज हो रही हैं। इस बीच सिद्धारमैया का यह बयान कि वह “अभी रिटायर होने के मूड में नहीं हैं” और 2028 में भी चुनाव लड़ेंगे — कई राजनीतिक संदेश देता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सिद्धारमैया का यह बयान न सिर्फ विपक्ष बल्कि कांग्रेस के भीतर के उन नेताओं के लिए भी संदेश है जो उन्हें जल्दी पद छोड़ने या डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) को मुख्यमंत्री बनाने की वकालत कर रहे थे। यह बयान स्पष्ट रूप से यह जताता है कि सिद्धारमैया न केवल अपने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के इरादे में हैं, बल्कि अगले चुनाव में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं।
कर्नाटक में सत्ता साझा करने को लेकर पिछले एक साल से अटकलें चल रही हैं। कई राजनीतिक रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच 2.5-2.5 साल की सत्ता साझेदारी (Power Sharing) पर सहमति दी थी। ऐसे में जैसे ही ढाई साल पूरे होने की तारीख करीब आई, इस बयान ने उस समझौते की संभावनाओं पर विराम लगा दिया है।
राजनीतिक हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि सिद्धारमैया का यह कदम एक रणनीतिक राजनीतिक दांव (Political Strategy) है। वह न केवल अपने समर्थक विधायकों को संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पकड़ अभी कमजोर नहीं हुई है, बल्कि यह भी दिखाना चाहते हैं कि कांग्रेस का संगठन और जनता दोनों अभी भी उनके साथ हैं।
कर्नाटक कांग्रेस के भीतर भी इस बयान के बाद दो खेमे बनते नजर आ रहे हैं। एक गुट सिद्धारमैया के अनुभव और स्थिर नेतृत्व की तारीफ कर रहा है, तो दूसरा गुट कह रहा है कि यह बयान पार्टी की “जनरेशन चेंज” की प्रक्रिया को पीछे धकेल सकता है। डीके शिवकुमार खेमे के नेताओं का कहना है कि 2028 तक सिद्धारमैया का सक्रिय बने रहना पार्टी की आंतरिक राजनीति को जटिल बना सकता है।
वहीं, भाजपा ने इस पूरे विवाद पर तंज कसते हुए कहा है कि “कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए हमेशा खींचतान रहती है।” भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि सिद्धारमैया का बयान उनकी अंदरूनी असुरक्षा को दर्शाता है और यह इस बात का संकेत है कि कांग्रेस सरकार में स्थिरता की कमी है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सिद्धारमैया का यह बयान भावनात्मक और रणनीतिक दोनों स्तरों पर असर डालता है। एक तरफ यह उनके समर्थकों में जोश भरता है, वहीं दूसरी ओर पार्टी के भीतर नेतृत्व की होड़ को खुलकर उजागर भी करता है।
सिद्धारमैया का राजनीतिक करियर हमेशा से संघर्ष और रणनीति से भरा रहा है। वह एक ऐसे नेता के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए भी स्वतंत्र छवि बनाए रखी है। उनकी जनाधार राजनीति, विशेष रूप से ओबीसी और ग्रामीण वर्गों में, अब भी मजबूत मानी जाती है। यही कारण है कि वह खुद को 2028 में भी चुनावी रेस में बनाए रखने की बात कर रहे हैं।
कांग्रेस हाईकमान की ओर से फिलहाल इस बयान पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि पार्टी आलाकमान ने इस बयान को “उनका व्यक्तिगत दृष्टिकोण” बताया है। हालांकि, पार्टी के भीतर इसने एक बार फिर सत्ता-संतुलन को लेकर चर्चाओं को हवा दे दी है।
कर्नाटक में 2028 के चुनावों तक का रास्ता लंबा है, लेकिन सिद्धारमैया ने इस बयान से साफ कर दिया है कि वह अभी राजनीतिक संन्यास लेने के मूड में नहीं हैं। उनका यह बयान विपक्ष के लिए भी एक चुनौती है क्योंकि उन्होंने यह दिखा दिया है कि उनकी राजनीतिक ऊर्जा और जनाधार दोनों अब भी बरकरार हैं।
अंततः, सिद्धारमैया का यह बयान सिर्फ भविष्य की इच्छा नहीं बल्कि एक साफ राजनीतिक संकेत है — कि वह आने वाले वर्षों में भी कांग्रेस की राजनीति का केंद्रीय चेहरा बने रहेंगे। और यही वह दांव है जो कर्नाटक की सियासत को आने वाले समय में और भी दिलचस्प बना देगा।








