




चीन की मोनोपॉली को तोड़ने के लिए भारत ने IREL को जापान के साथ 13 साल पुराना निर्यात समझौता रोकने को कहा, देश में खुद रिफाइनिंग और मैग्नेट निर्माण पर जोर।
भारत ने REEs में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ाया बड़ा कदम, चीन की मोनोपॉली को तोड़ने की तैयारी
नई दिल्ली, 18 जून 2025: भारत सरकार ने रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements – REEs) के मामले में चीन पर निर्भरता घटाने के लिए अहम निर्णय लिया है। सरकार ने इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) को निर्देश दिया है कि वह जापान को REEs का निर्यात बंद करे, जिससे अब भारत इन संसाधनों की प्रोसेसिंग अपने देश में ही करेगा।
सूत्रों के अनुसार, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री से जुड़े शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक में यह रणनीति स्पष्ट की। खासतौर पर नियोडिमियम जैसे एलिमेंट्स का ज़िक्र किया गया, जिसका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों के मोटर में लगने वाले मैग्नेट्स में होता है।
भारत-जापान समझौता अब खत्म
2012 में IREL और जापानी कंपनी टोयोत्सु रेयर अर्थ्स इंडिया के बीच हुआ था समझौता। इसके तहत भारत से निकाले गए REEs की प्रोसेसिंग भारत में होती थी और फाइनल प्रोडक्ट जापान भेजा जाता था। 2024 में ही IREL ने 1,000 मीट्रिक टन से अधिक रेयर अर्थ एलिमेंट्स टोयोत्सु को भेजे थे — जो IREL के कुल उत्पादन का लगभग 33% था।
चीन की पकड़: क्यों भारत को चाहिए था बदलाव?
१. चीन दुनिया में REEs का 69% उत्पादन करता है
२. इसकी 90% रिफाइनिंग भी चीन में होती है
३. चीन की तकनीक सबसे उन्नत, बाकी देश अब तक पीछे
४. चीन इन संसाधनों को रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है
इसीलिए भारत अब चीन पर निर्भरता घटाकर मेक इन इंडिया के तहत पूरी रिफाइनिंग और मैग्नेट निर्माण अपने देश में करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
भारत के पास भी हैं विशाल भंडार
भारत के पास मोनाज़ाइट, बास्टनासाइट और ज़ेनोटाइम जैसे खनिजों का विशाल भंडार है, लेकिन रिफाइनिंग तकनीक के अभाव में अब तक इनका सही उपयोग नहीं हो पाया। अब सरकार इस अंतर को खत्म करना चाहती है।
सरकार की रणनीतिक बैठक
मंगलवार को केंद्र सरकार ने इस विषय पर एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की जिसमें भारी उद्योग मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी और कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी मौजूद रहे। उन्होंने कहा: “अब भारत केवल खनन (Mining) तक सीमित नहीं रहेगा। हम रिसर्च, प्रोसेसिंग और उत्पादन तक की पूरी वैल्यू चेन भारत में ही विकसित करेंगे।”
क्या होंगे भविष्य के कदम?
१. भारत में ही REEs की रिफाइनिंग के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर कार्य
२. मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स की स्थापना
३. EV इंडस्ट्री, डिफेंस और स्पेस सेक्टर की घरेलू सप्लाई चेन को मज़बूती
४. IITs और रिसर्च लैब्स के साथ साझेदारी
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