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    कर्नाटक सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, बानु मुश्ताक को मैसूरु दशहरा उद्घाटन के लिए आमंत्रण पर दायर याचिका खारिज

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    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक सरकार के उस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी, जिसमें समाजसेवी बानु मुश्ताक को इस साल के मैसूरु दशहरा महोत्सव के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया है। इस आमंत्रण को चुनौती देने वाली याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सरकार का प्रशासनिक और सांस्कृतिक अधिकार है और इसमें न्यायपालिका का हस्तक्षेप उचित नहीं है।

    कुछ याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटक सरकार के इस कदम का विरोध किया था। उनका कहना था कि दशहरा जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महोत्सव का उद्घाटन केवल उस व्यक्ति द्वारा होना चाहिए, जो समाज में “विशेष धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान” रखता हो। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि बानु मुश्ताक का नाम चुनने से त्योहार की परंपरा को ठेस पहुंचेगी और सरकार का यह निर्णय राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से लिया गया है।

    मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा –

    • यह सरकार का अधिकार है कि वह किसे सांस्कृतिक आयोजन का मुख्य अतिथि बनाना चाहती है।

    • ऐसे मामलों में अदालत को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि कोई संवैधानिक प्रावधान या मौलिक अधिकार का उल्लंघन न हुआ हो।

    • त्योहार समाज को जोड़ने का माध्यम हैं और ऐसे आयोजनों को लेकर अनावश्यक विवाद खड़ा करना उचित नहीं है।

    बानु मुश्ताक कर्नाटक की जानी-मानी समाजसेवी और शिक्षा सुधारक हैं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई अहम काम किए हैं। उन्हें राज्य सरकार द्वारा कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। सरकार का मानना है कि ऐसे व्यक्तित्व को मैसूरु दशहरा जैसे ऐतिहासिक आयोजन का नेतृत्व करने का अवसर देना समाज में सकारात्मक संदेश देगा।

    कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि यह निर्णय राज्य की समावेशी नीति को दर्शाता है। दशहरा केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है, जिसमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी जरूरी है।

    हालांकि, विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम की आलोचना जारी रखी है। उनका कहना है कि दशहरा जैसे उत्सवों को राजनीतिक संदेश देने के लिए इस्तेमाल करना गलत है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार समाज को बांटने और तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है।

    सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कुछ लोगों ने इसे समाज की विविधता को सम्मान देने वाला कदम बताया, जबकि अन्य ने इसे दशहरा की परंपराओं से जुड़ा विवाद करार दिया।

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि सांस्कृतिक आयोजनों के निर्णय प्रशासनिक दायरे में आते हैं और इसमें अदालत का हस्तक्षेप सीमित होना चाहिए। अब सभी की निगाहें 2025 के मैसूरु दशहरा पर टिकी हैं, जहां बानु मुश्ताक उद्घाटन कर समाज के सभी वर्गों को एकजुट करने का संदेश देंगी।

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