




महाराष्ट्र में एक बेहद दुखद घटना सामने आई है। अनुराग अनिल बोर्कर नाम के 17 वर्षीय किशोर ने NEET UG 2025 परीक्षा में 99.99 पर्सेंटाइल प्राप्त किया और OBC श्रेणी में ऑल इंडिया रैंक 1475 हासिल की। इसके बावजूद, अपने करियर के विकल्प को लेकर मानसिक और भावनात्मक दबाव महसूस करते हुए उसने जीवन समाप्त कर लिया।
परिवार के अनुसार, अनुराग पर हमेशा से डॉक्टर बनने का दबाव था। हालांकि उसने परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन उसका मन इस करियर को अपनाने के लिए तैयार नहीं था। वह पहले से ही इस सोच में परेशान था कि क्या वह वास्तव में डॉक्टर बनना चाहता है या नहीं।
पुलिस ने बताया कि अनुराग ने आत्महत्या से पहले किसी को चेतावनी नहीं दी थी। घर पर मिलने वाले एक नोट में उसने स्पष्ट रूप से लिखा था कि वह डॉक्टर नहीं बनना चाहता और अब जीवन को समाप्त करना ही सही विकल्प है। परिवार का कहना है कि अनुराग ने हमेशा ही शैक्षिक सफलता के लिए कड़ी मेहनत की थी, लेकिन दबाव और भविष्य की चिंता उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसी प्रतिस्पर्धात्मक पढ़ाई का अत्यधिक दबाव किशोरों और युवाओं में गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। परीक्षा में उच्च पर्सेंटाइल या रैंक होना हमेशा यह सुनिश्चित नहीं करता कि छात्र मानसिक रूप से स्वस्थ है।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि माता-पिता और स्कूल प्रशासन को बच्चों के करियर विकल्पों में उनकी रुचि और मनोवृत्ति को समझना बेहद जरूरी है। बच्चों को अपनी पसंद का करियर चुनने की आज़ादी और उन्हें भावनात्मक समर्थन देने से इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोका जा सकता है।
राज्य और केंद्रीय स्तर पर शैक्षिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए कई पहलें की जा रही हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं हैं। शिक्षा संस्थानों और परिवारों को मिलकर किशोरों की भावनात्मक स्थिति को समझना और उनके निर्णयों का सम्मान करना चाहिए।
पुलिस ने इस मामले को आत्महत्या का मामला माना है और शुरुआती जांच में कोई आपराधिक तत्व सामने नहीं आया है। परिवार और विद्यालय प्रशासन के सहयोग से मामले की जांच चल रही है। साथ ही, अधिकारियों ने अन्य छात्रों और परिवारों को चेतावनी दी है कि वे मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें और दबाव की स्थिति में उचित मार्गदर्शन प्राप्त करें।
इस घटना ने महाराष्ट्र और पूरे देश में शैक्षिक दबाव, प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं और किशोर मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल अंक और रैंक नहीं, बल्कि बच्चों की खुशहाली और मानसिक स्थिरता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
महाराष्ट्र सरकार ने इस घटना पर शोक व्यक्त किया और किशोर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग मिलकर कदम उठाने का आश्वासन दिया। विशेषज्ञों ने सभी परिवारों को यह संदेश दिया कि बच्चों के फैसलों का सम्मान करना, उन्हें उनकी रुचि के अनुसार करियर चुनने देना और समय-समय पर उनकी भावनात्मक स्थिति को समझना अत्यंत जरूरी है।
अनुराग की इस दुखद मौत ने पूरे समाज को चेताया है कि अत्यधिक दबाव, करियर अपेक्षाओं और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी किशोरों के लिए खतरनाक हो सकती है। इसलिए परिवार, शिक्षक और समाज मिलकर ही इस तरह की घटनाओं को रोक सकते हैं।