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    सीमेंट और कागज उद्योगों पर सरकार की सख्ती — 2026-27 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाने का आदेश, पर्यावरण मंत्रालय ने जारी किए नए मानक

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    भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन और बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने सीमेंट, एल्युमीनियम, लुगदी और कागज उद्योगों के लिए ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन घटाने के नए मानक जारी किए हैं। इन उद्योगों को वित्तीय वर्ष 2026-27 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में ठोस कमी लाने का लक्ष्य दिया गया है।

    सरकार का यह फैसला ‘भारत नेट ज़ीरो मिशन 2070’ के तहत लिया गया है, जिसके जरिए देश आने वाले दशकों में स्थायी विकास और स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहता है।

    जलवायु परिवर्तन पर भारत की प्रतिबद्धता

    भारत ने वर्ष 2021 में ग्लासगो में हुए COP26 सम्मेलन में यह ऐलान किया था कि वह 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करेगा। इसके तहत देश ने ऊर्जा, उद्योग, परिवहन और कृषि जैसे क्षेत्रों में कार्बन फुटप्रिंट घटाने के लिए ठोस रणनीति बनाई है।

    इसी दिशा में अब औद्योगिक क्षेत्रों, खासकर सीमेंट और कागज उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है क्योंकि ये सेक्टर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बड़े स्रोतों में शामिल हैं।

    सीमेंट उद्योग पर विशेष फोकस

    सीमेंट उत्पादन के दौरान बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जित होती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में सीमेंट उद्योग देश के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 8 प्रतिशत हिस्सा है।

    पर्यावरण मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि सीमेंट कंपनियां अब उत्पादन प्रक्रिया में लो-कार्बन टेक्नोलॉजी, वेस्ट हीट रिकवरी सिस्टम और फ्यूल सब्स्टीट्यूशन तकनीक को अपनाएं।

    सरकार का लक्ष्य है कि सीमेंट उत्पादन में प्रति टन उत्सर्जन को 10-12 प्रतिशत तक घटाया जाए। इसके लिए कंपनियों को नए उत्सर्जन मॉनिटरिंग उपकरण और ग्रीन एनर्जी उपयोग योजना अपनानी होगी।

    कागज और लुगदी उद्योगों के लिए सख्त दिशानिर्देश

    कागज उद्योग पारंपरिक रूप से कोयले और फ्यूल ऑयल पर निर्भर रहा है, जिससे CO₂, मिथेन (CH₄) और अन्य गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है।

    पर्यावरण मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि इस क्षेत्र में:

    • उत्पादन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए।

    • रीसाइक्लिंग प्रोसेस को प्राथमिकता दी जाए ताकि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम हो।

    • अपशिष्ट जल प्रबंधन और एनर्जी एफिशिएंसी सिस्टम को अनिवार्य बनाया जाए।

    इसके अलावा, मंत्रालय ने उद्योगों से कहा है कि वे हर साल अपनी कार्बन रिपोर्ट सार्वजनिक करें ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

    एल्युमीनियम उद्योग पर भी नजर

    एल्युमीनियम उत्पादन में बिजली की भारी खपत होती है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है। सरकार चाहती है कि इस क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सोलर और हाइड्रो पावर) के उपयोग को प्राथमिकता दी जाए।

    कंपनियों को अब अपने ऊर्जा मिश्रण (Energy Mix) में कम से कम 25 प्रतिशत हिस्सा ग्रीन एनर्जी का रखना होगा।

    उद्योगों को पालन न करने पर सख्त कार्रवाई

    पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जो उद्योग निर्धारित समयसीमा में उत्सर्जन में कमी नहीं लाएंगे, उन पर जुर्माना, पर्यावरण स्वीकृति निलंबन या उत्पादन रोक जैसी कार्रवाई की जा सकती है।

    साथ ही, मंत्रालय ने राज्यों को भी निर्देश दिया है कि वे स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCBs) के माध्यम से इन मानकों की निगरानी करें और समय-समय पर रिपोर्ट केंद्र को भेजें।

    ग्रीन इंडस्ट्री के लिए प्रोत्साहन

    सरकार सिर्फ दंडात्मक नहीं बल्कि प्रोत्साहनात्मक कदम भी उठा रही है। जो कंपनियां तय सीमा से पहले अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाएंगी, उन्हें ग्रीन टैक्स छूट, कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट और वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाएंगे।

    यह कदम न केवल उद्योगों को स्वच्छ उत्पादन की दिशा में बढ़ाएगा बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त भी देगा, जहां अब स्थायी उत्पादन एक बड़ी आवश्यकता बन चुकी है।

    विशेषज्ञों की राय

    पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह निर्णय भविष्य की दिशा तय करेगा।
    जलवायु नीति विश्लेषक डॉ. अंजलि मेहता का कहना है:

    “भारत की इंडस्ट्रियल नीतियां अब स्पष्ट रूप से क्लाइमेट सेंसिटिव हो रही हैं। सीमेंट और पेपर सेक्टर में कार्बन कटौती का लक्ष्य हासिल करना चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन इससे भारत का ग्लोबल इमेज मजबूत होगा।”

    वहीं, इंडस्ट्री एसोसिएशन्स ने कहा है कि वे सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने वित्तीय और तकनीकी सहायता की मांग भी की है ताकि ट्रांजिशन प्रोसेस आसान हो सके।

    भविष्य की दिशा

    भारत तेजी से एक ग्रीन इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है। सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन मिशन और कार्बन मार्केट पॉलिसी जैसी योजनाओं के साथ यह स्पष्ट है कि सरकार विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना चाहती है।

    सीमेंट, कागज और एल्युमीनियम उद्योगों के लिए यह सिर्फ एक आदेश नहीं बल्कि एक अवसर है — सस्टेनेबल ग्रोथ की ओर कदम बढ़ाने का।

    यदि उद्योग इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास करते हैं, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल अपने नेट ज़ीरो लक्ष्य के करीब पहुंचेगा, बल्कि वह दुनिया के लिए “ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग मॉडल” भी पेश करेगा।

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