




कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने दिवाली से पहले राज्य की नौकरीपेशा महिलाओं को एक बड़ी सौगात दी है। राज्य कैबिनेट ने गुरुवार को “मासिक धर्म अवकाश नीति 2025” को मंजूरी दे दी, जिसके तहत सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को हर महीने एक दिन का मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave) प्रदान किया जाएगा। यह फैसला महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और कार्य-जीवन संतुलन को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
कर्नाटक देश का ऐसा तीसरा राज्य बन गया है जिसने महिलाओं के लिए मासिक धर्म अवकाश को औपचारिक रूप से नीति का हिस्सा बनाया है। इससे पहले केरल और दिल्ली सरकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर इस दिशा में कदम बढ़ाए थे।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि, “महिलाओं की कार्यक्षमता, आत्मसम्मान और स्वास्थ्य का ध्यान रखना हमारी सरकार की प्राथमिकता है। कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति संवेदनशील और सहयोगी वातावरण बनाना समय की मांग है।” उन्होंने आगे कहा कि यह नीति सिर्फ सरकारी विभागों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि निजी कंपनियों को भी इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
सरकार के इस निर्णय के बाद राज्य के करीब 12 लाख महिला कर्मचारियों को सीधा लाभ मिलने की संभावना है। इसमें सरकारी कार्यालयों के अलावा शिक्षण संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यरत महिलाएं शामिल हैं।
मासिक धर्म अवकाश नीति के तहत महिलाओं को प्रत्येक माह एक अतिरिक्त भुगतान अवकाश का अधिकार मिलेगा। यदि कोई महिला इस अवकाश का उपयोग नहीं करना चाहती है, तो उसे यह दिन वर्ष के अंत में अतिरिक्त अवकाश के रूप में जोड़ने की सुविधा दी जाएगी। इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया गया है कि इस अवकाश के कारण किसी भी महिला कर्मचारी की वेतन, प्रमोशन या करियर ग्रोथ पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कर्नाटक सरकार ने इस नीति के साथ ही महिलाओं के लिए स्वास्थ्य जांच शिविरों, मासिक धर्म स्वच्छता कार्यक्रमों, और कार्यस्थलों पर सेनेटरी नेपकिन वेंडिंग मशीनों की स्थापना की भी योजना बनाई है। महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर ने कहा कि यह नीति महिलाओं की जरूरतों को समझने और उन्हें सम्मान देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
उन्होंने कहा, “मासिक धर्म कोई वर्जना नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। सरकार का यह कदम महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने और कार्यस्थल पर आत्मविश्वास के साथ काम करने में मदद करेगा।”
फिलहाल यह नीति राज्य के सभी सरकारी विभागों में तत्काल प्रभाव से लागू की जाएगी, जबकि निजी कंपनियों को इसके लिए स्वैच्छिक अनुपालन (Voluntary Adoption) का विकल्प दिया गया है। राज्य सरकार उम्मीद कर रही है कि आने वाले महीनों में बड़ी संख्या में निजी संस्थान भी इस नीति को अपनाएंगे।
वहीं, महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों ने कर्नाटक सरकार के इस कदम की सराहना की है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस फैसले को “लैंगिक समानता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि” बताया है।
सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से वायरल हो रही है। हजारों लोगों ने इस निर्णय को महिलाओं के जीवन में एक “सकारात्मक बदलाव” बताते हुए इसका स्वागत किया। कई यूजर्स ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “कर्नाटक ने एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसे पूरे देश को अपनाना चाहिए।”
हालांकि, कुछ वर्गों ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या यह नीति महिलाओं को “अलग” या “कमज़ोर” के रूप में पेश करेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि नीति की सफलता इसके सही कार्यान्वयन और सामाजिक दृष्टिकोण पर निर्भर करेगी।
समाजशास्त्री डॉ. अर्चना रेड्डी कहती हैं, “मासिक धर्म अवकाश का उद्देश्य महिलाओं को सुविधा देना है, न कि उन्हें विशेष श्रेणी में रखना। इसलिए, जरूरी है कि इस नीति को संवेदनशीलता और समानता के दृष्टिकोण से लागू किया जाए।”
इस नीति के बाद यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या केंद्र सरकार को भी राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी नीति बनानी चाहिए। देशभर की कई महिला संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस विषय पर ध्यान देने की मांग की है।
कर्नाटक सरकार ने कहा है कि वह इस नीति के पहले छह महीने के प्रभाव का मूल्यांकन (Impact Assessment) करेगी और आवश्यकतानुसार इसमें सुधार भी करेगी। सरकार का मानना है कि यह कदम न केवल महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि कार्यस्थलों पर समावेशिता (Inclusivity) को भी बढ़ावा देगा।