




कृषि क्षेत्र पर बारिश का कहर: महाराष्ट्र में 5.5 लाख हेक्टेयर फसलें डूबी, किसानों पर संकट
महाराष्ट्र इस समय भारी बारिश और बाढ़ जैसी स्थिति से जूझ रहा है। मानसून के इस दौर में राज्य के कई हिस्सों में हो रही लगातार बारिश ने जहां आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है, वहीं कृषि क्षेत्र पर भी इसका गहरा असर पड़ा है। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, राज्य के 17 जिलों में लगभग 5.5 लाख हेक्टेयर खारिफ फसलें पूरी तरह प्रभावित हुई हैं।
यह स्थिति किसानों के लिए दोहरी मार बनकर आई है। एक ओर बढ़ती महंगाई और कृषि लागत पहले से ही किसानों को परेशान कर रही थी, वहीं अब प्राकृतिक आपदा ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है।
17 जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नांदेड जिला सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है, जहां लगभग 2.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें नष्ट हुई हैं। इसके अलावा हिंगोली, परभणी, धाराशिव, जालना, सांगली और विदर्भ क्षेत्र के कई हिस्से भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
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कपास, सोयाबीन, मक्का और दालों जैसी खरीफ फसलें पूरी तरह जलमग्न हो चुकी हैं।
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निचले इलाकों के गांवों में खेतों का पानी निकलना अभी भी चुनौती बना हुआ है।
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कई जगहों पर पशुधन और गोदामों में रखे अनाज भी खराब होने की खबरें आई हैं।
किसानों की दुर्दशा और बढ़ती चिंता
किसानों का कहना है कि यह उनके लिए “साल की सबसे बड़ी त्रासदी” साबित हो रही है।
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कई किसानों ने बैंक और निजी साहूकारों से कर्ज लेकर फसल बोई थी। अब फसलें नष्ट हो जाने से उनकी कर्ज़ चुकाने की क्षमता पर सवाल उठ गए हैं।
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मराठवाड़ा क्षेत्र के किसानों ने कहा है कि वे पहले ही सूखे और पिछले सीज़नों की खराब उपज से परेशान थे, और अब यह बारिश उनकी कमर तोड़ रही है।
सरकार की पहल और राहत उपाय
मुख्यमंत्री कार्यालय ने जिला कलेक्टरों को प्रभावित क्षेत्रों का तुरंत सर्वेक्षण करने और नुकसान का आकलन तैयार करने का निर्देश दिया है।
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प्रभावित किसानों को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) और राज्य आपदा राहत कोष (SDRF) के तहत मुआवजा देने का आश्वासन दिया गया है।
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राज्य सरकार ने केंद्र से भी अतिरिक्त मदद की मांग की है।
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आपदा प्रबंधन विभाग ने बताया कि NDRF और SDRF की 40 से अधिक टीमें विभिन्न जिलों में राहत और बचाव कार्यों में लगी हैं।
हालांकि विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार केवल आश्वासन देती है लेकिन ज़मीनी स्तर पर किसानों को मुआवज़ा मिलने में महीनों लग जाते हैं।
कृषि विशेषज्ञों की राय
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि महाराष्ट्र में जल प्रबंधन और फसल चक्र की उचित योजना के अभाव में हर साल ऐसी स्थिति बनती है।
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अगर समय पर ड्रिप इरिगेशन, जल संरक्षण और नदी-जोड़ परियोजनाओं पर काम किया जाए, तो किसानों को इस तरह की तबाही से बचाया जा सकता है।
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इसके अलावा सरकार को किसानों के लिए बीमा योजनाओं को अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाना होगा, ताकि नुकसान की भरपाई समय रहते हो सके।
प्रभावित क्षेत्रों में जनजीवन
सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि गांवों और कस्बों में भी बारिश का असर दिखाई दे रहा है।
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निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भर गया है।
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कई जगहों पर सड़कें टूट गई हैं, पुल बह गए हैं, और यातायात बाधित हुआ है।
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ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी और बिजली की समस्या भी गंभीर हो चुकी है।
आगे की चुनौतियाँ
मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में भी भारी बारिश की चेतावनी दी है। ऐसे में किसानों के लिए स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
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पहले से जलमग्न खेतों में और पानी भरने से फसलें पूरी तरह सड़ जाएंगी।
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पशुपालन और डेयरी उद्योग पर भी बड़ा असर पड़ेगा।
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जो मुख्य रूप से खेती पर निर्भर है, आने वाले महीनों में दबाव में रहेगी।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र में भारी बारिश ने कृषि क्षेत्र को तगड़ा झटका दिया है। 5.5 लाख हेक्टेयर फसलों का प्रभावित होना केवल किसानों का संकट नहीं है, बल्कि यह राज्य और देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय है।
सरकार ने राहत और मुआवज़े के आश्वासन दिए हैं, लेकिन किसानों का वास्तविक विश्वास तभी लौटेगा जब मदद समय पर और पर्याप्त मात्रा में उन तक पहुंचेगी।