




भारत में चावल और गेहूं का सरकारी भंडार ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गया है। हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, चावल का सरकारी भंडार लगभग 48.2 मिलियन टन तक पहुँच गया है, जबकि गेहूं का भंडार करीब 33.3 मिलियन टन दर्ज किया गया है। यह गेहूं के भंडारण का पिछले चार साल का सबसे उच्च स्तर है। इन आंकड़ों से साफ है कि देश खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से मज़बूत स्थिति में है।
रिकॉर्ड स्तर पर चावल का भंडार
चावल की सरकारी खरीद और भंडारण इस बार रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है। 48.2 मिलियन टन का आंकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है। चावल उत्पादन में स्थिरता और सरकारी खरीद नीति ने इस भंडार को मजबूत किया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और निर्यात जरूरतों के बावजूद यह स्तर बरकरार है।
गेहूं का चार साल का उच्चतम स्तर
गेहूं का सरकारी भंडार 33.3 मिलियन टन तक पहुँच गया है, जो बीते चार वर्षों में सबसे अधिक है। 2022 में गेहूं के उत्पादन में कमी और निर्यात की वजह से भंडार घटा था। लेकिन इस बार बेहतर मानसून और किसानों को उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलने से उत्पादन में वृद्धि हुई। सरकार ने इस साल गेहूं की खरीद को प्राथमिकता दी, जिससे स्टॉक मजबूत हुआ।
सरकार की रणनीति
केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में खाद्यान्न खरीद और भंडारण के लिए कई कदम उठाए हैं। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) को पर्याप्त संसाधन दिए गए हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म से पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। किसानों को समय पर भुगतान और एमएसपी में नियमित बढ़ोतरी से खरीद प्रक्रिया को गति मिली है।
खाद्य सुरक्षा पर असर
रिकॉर्ड स्तर के भंडार का सबसे बड़ा फायदा खाद्य सुरक्षा को होगा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सस्ता अनाज उपलब्ध रहेगा। सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी योजनाओं को लंबी अवधि तक जारी रख पाएगी। आपात स्थितियों, जैसे सूखा, बाढ़ या वैश्विक आपूर्ति संकट में भी देश आत्मनिर्भर रहेगा।
मूल्य नियंत्रण में सहूलियत
पर्याप्त भंडार होने से बाजार में चावल और गेहूं की कीमतों पर नियंत्रण बना रहेगा। सरकार खुले बाजार में अनाज उतारकर महंगाई को नियंत्रित कर सकती है। यह स्थिति उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के लिए सकारात्मक है।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न की आपूर्ति में कई चुनौतियाँ हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन ने गेहूं व चावल की उपलब्धता पर असर डाला। कई देशों में खाद्यान्न की कमी से कीमतें बढ़ीं। ऐसे में भारत का यह मजबूत भंडार न केवल घरेलू स्थिरता बल्कि निर्यात क्षमता को भी बढ़ा सकता है।
चुनौतियाँ
हालांकि, रिकॉर्ड भंडार के बावजूद कुछ चुनौतियाँ भी सामने हैं:
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भंडारण क्षमता की कमी – कई गोदामों की हालत खराब है और अनाज की बर्बादी होती है।
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लॉजिस्टिक दिक्कतें – ग्रामीण इलाकों से अनाज को सुरक्षित रूप से संग्रहित और वितरित करना चुनौतीपूर्ण है।
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निर्यात नीति में संतुलन – घरेलू आवश्यकताओं और निर्यात के बीच सही तालमेल बनाना ज़रूरी है।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को इस अवसर का उपयोग खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए करना चाहिए। यदि भंडारण प्रबंधन बेहतर किया जाए तो अनाज की बर्बादी रोकी जा सकती है। निर्यात से किसानों को वैश्विक बाजार में उचित दाम मिलेंगे। इससे भारत खाद्यान्न आपूर्ति का विश्वसनीय केंद्र बन सकता है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने सरकार की भंडारण नीति पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि पर्याप्त भंडार होने के बावजूद गरीबों तक सही समय पर वितरण नहीं हो पाता। राशन की कालाबाज़ारी और वितरण में गड़बड़ी पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। सरकार से यह भी सवाल किया जा रहा है कि किसानों को उनकी उपज का वास्तविक लाभ क्यों नहीं मिल पाता।
भारत में चावल और गेहूं का सरकारी भंडार ऐतिहासिक स्तर पर पहुँचना एक बड़ी उपलब्धि है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा की गारंटी देता है बल्कि कीमत नियंत्रण और आर्थिक स्थिरता में भी मदद करेगा। हालांकि, भंडारण ढांचे और वितरण तंत्र को और मज़बूत बनाना होगा ताकि इस भंडार का अधिकतम लाभ जनता और किसानों तक पहुँच सके।