




नागपुर – महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा सुर्खियों में है। मराठा आरक्षण आंदोलन के प्रमुख नेता मनोज जरांगे पाटिल ने शुक्रवार को नागपुर में आयोजित ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) मार्च को लेकर कांग्रेस पार्टी पर गंभीर आरोप लगाए। जरांगे ने दावा किया कि यह पूरा मार्च राहुल गांधी और कांग्रेस के संरक्षण में हुआ और इसे राजनीतिक फायदे के लिए प्रायोजित किया गया।
जरांगे का बयान ऐसे समय में आया है जब महाराष्ट्र में ओबीसी और मराठा आरक्षण को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। नागपुर में आयोजित यह ओबीसी मार्च सामाजिक न्याय और समान अधिकारों की मांग को लेकर निकाला गया था, लेकिन जरांगे का आरोप है कि इसके पीछे असली मकसद समाज के कल्याण से ज्यादा राजनीतिक लाभ उठाना था।
मनोज जरांगे ने पत्रकारों से बातचीत में कहा,
“कांग्रेस पार्टी अब आरक्षण की राजनीति में हस्तक्षेप कर रही है। नागपुर का ओबीसी मार्च पूरी तरह से राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा प्रायोजित था। अगर यह समाज के भले के लिए होता, तो कांग्रेस इसे राजनीति से दूर रखती। लेकिन यह स्पष्ट रूप से वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है।”
जरांगे ने यह भी कहा कि मराठा समाज और ओबीसी समाज के बीच कोई टकराव नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल इस मुद्दे को जानबूझकर भड़का रहे हैं ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों में इसका फायदा उठाया जा सके। उन्होंने कहा कि वह आरक्षण को लेकर किसी भी समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि सबके समान अधिकारों के पक्षधर हैं।
उन्होंने आगे कहा,
“कांग्रेस ने जिस तरह नागपुर में ओबीसी मार्च को आयोजित कराया, वह समाज को बांटने की कोशिश है। राहुल गांधी जो ‘भारत जोड़ो’ की बात करते हैं, वही लोग समाज को तोड़ने में लगे हैं। यह दोहरा रवैया है।”
नागपुर में हुए इस मार्च में हजारों लोग शामिल हुए थे, जिनमें ओबीसी समुदाय के कई संगठन, स्थानीय नेता और कांग्रेस कार्यकर्ता मौजूद थे। मार्च का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकार से ओबीसी के लिए स्थायी आरक्षण व्यवस्था की मांग करना था। हालांकि, जरांगे के बयान के बाद यह मार्च अब राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है।
कांग्रेस की ओर से अभी तक इस आरोप पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पार्टी के सूत्रों ने बताया कि यह मार्च पूरी तरह सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व के उद्देश्य से आयोजित किया गया था। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“मनोज जरांगे पाटिल जैसे नेता आरक्षण के मुद्दे को लेकर जनता में भ्रम फैला रहे हैं। कांग्रेस ने हमेशा सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा की है, चाहे वह मराठा हों या ओबीसी।”
वहीं बीजेपी ने इस विवाद पर कांग्रेस को घेरने में कोई देरी नहीं की। महाराष्ट्र बीजेपी के प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस इस तरह के मार्च के जरिए समाज को बांटने का काम कर रही है। उन्होंने कहा,
“कांग्रेस को पता है कि अब वह सत्ता में नहीं लौट सकती, इसलिए वह समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी का हर कार्यक्रम चुनावी तैयारी का हिस्सा है।”
इस पूरे विवाद के बीच महाराष्ट्र सरकार के लिए चुनौती यह है कि वह मराठा और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को संतुलित तरीके से हल करे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पहले ही साफ किया था कि उनकी सरकार दोनों समुदायों के बीच कोई टकराव नहीं होने देगी। हालांकि, जरांगे के बयान से राजनीतिक माहौल गरमा गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद आने वाले महीनों में और तेज हो सकता है। महाराष्ट्र में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, और आरक्षण का मुद्दा हर दल के लिए सबसे बड़ा चुनावी हथियार बनने जा रहा है।
मनोज जरांगे, जो पिछले एक वर्ष से मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा बने हुए हैं, ने हाल के महीनों में कई बार राजनीतिक दलों को चेतावनी दी है कि वे इस आंदोलन को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल न करें। उनका कहना है कि मराठा समाज केवल न्याय चाहता है, न कि राजनीति।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार और विपक्ष ने आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति करना नहीं छोड़ी, तो वह राज्यभर में नया जन आंदोलन शुरू करेंगे। जरांगे ने यह भी कहा कि वह आने वाले दिनों में नागपुर, औरंगाबाद और पुणे में जनसभा करेंगे ताकि जनता को इस ‘राजनीतिक नाटक’ के पीछे की सच्चाई बताई जा सके।
वहीं, ओबीसी संगठनों ने जरांगे के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि नागपुर मार्च पूरी तरह से स्वतंत्र सामाजिक आंदोलन था, जिसमें किसी पार्टी की आधिकारिक भूमिका नहीं थी। ओबीसी एकता मंच के संयोजक ने कहा,
“हम समाज के अधिकारों के लिए लड़े हैं, न कि किसी राजनीतिक पार्टी के एजेंडे के लिए। जरांगे जी का आरोप निराधार है। कांग्रेस का समर्थन होना और कांग्रेस द्वारा आयोजन करवाना, दोनों अलग बातें हैं।”
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा और ओबीसी आरक्षण हमेशा संवेदनशील मुद्दा रहा है। एक ओर मराठा समाज शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है, वहीं ओबीसी समुदाय को डर है कि इससे उनका कोटा प्रभावित हो सकता है। यही कारण है कि हर राजनीतिक दल इस मुद्दे को सावधानी से उठाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जरांगे के ताजा बयान से महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस और मराठा संगठनों के बीच दूरियां बढ़ सकती हैं। वहीं बीजेपी और शिवसेना शिंदे गुट इसे कांग्रेस के खिलाफ एक नया राजनीतिक हथियार बना सकते हैं।
फिलहाल, नागपुर का यह ओबीसी मार्च और मनोज जरांगे का बयान महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य को फिर से गर्मा चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस विवाद पर क्या रुख अपनाती है और क्या यह मामला केवल बयानबाजी तक सीमित रहेगा या राजनीतिक समीकरणों को नया मोड़ देगा।