




दिल्ली और एनसीआर में इस साल दिवाली, गुरुपर्व और क्रिसमस पर एक बड़ी राहत की संभावना बनती दिख रही है। लंबे समय से प्रतिबंधित पटाखों के बीच अब ‘ग्रीन पटाखों’ की धमाकेदार वापसी हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली है और अब फैसला सुरक्षित रख लिया है। यदि अदालत से हरी झंडी मिलती है, तो वर्षों बाद दिल्ली का आसमान फिर से रंग-बिरंगी रोशनी और आतिशबाजी से जगमगा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला मुख्य रूप से दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण और लोगों की धार्मिक परंपराओं के बीच संतुलन से जुड़ा हुआ है। दिवाली के समय हर साल प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंच जाता है, जिसके कारण प्रशासन और न्यायालयों ने पारंपरिक पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, इस बार स्थिति थोड़ी बदली हुई दिख रही है, क्योंकि वैज्ञानिक रूप से विकसित ‘ग्रीन पटाखे’ को पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
ग्रीन पटाखे क्या हैं?
ग्रीन पटाखे वे आतिशबाज़ी उत्पाद हैं जिन्हें भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने विकसित किया है। इन पटाखों में पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30% से 40% तक कम प्रदूषण होता है। इनमें भारी धातुएं जैसे बेरियम नाइट्रेट और सल्फर की मात्रा बेहद सीमित होती है, जिससे हवा में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम होता है। ये पटाखे सामान्य पटाखों की तरह ही रोशनी और आवाज पैदा करते हैं, लेकिन पर्यावरण पर इनका प्रभाव काफी कम होता है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और पर्यावरण संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने बीते कुछ वर्षों में दिवाली और अन्य त्योहारों पर पटाखों के उपयोग को लेकर कई बार कड़े निर्देश दिए हैं। 2018 में अदालत ने स्पष्ट किया था कि केवल ‘ग्रीन पटाखों’ की बिक्री और उपयोग की अनुमति दी जाएगी। हालांकि, इसके बाद भी कई राज्यों में इन निर्देशों का उल्लंघन होता रहा। अब जब तकनीकी रूप से बेहतर और अधिक सुरक्षित ग्रीन पटाखे बाजार में उपलब्ध हैं, तो अदालत के नए निर्णय से इस पर एक स्पष्ट नीति सामने आ सकती है।
दिल्ली-एनसीआर की हवा और त्योहारों की भावना
दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीनों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब स्तर पर पहुंच जाती है। धान के अवशेषों को जलाने, वाहनों के धुएं और औद्योगिक प्रदूषण के साथ-साथ दिवाली पर पटाखों से निकलने वाला धुआं भी प्रदूषण को और बढ़ा देता है। हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि ‘ग्रीन पटाखे’ पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं हैं, लेकिन ये पारंपरिक पटाखों की तुलना में कहीं बेहतर विकल्प हैं।
दूसरी ओर, कई सामाजिक और धार्मिक संगठन लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि त्योहारों की पारंपरिक खुशियों को पूरी तरह खत्म नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि विज्ञान के सहयोग से अगर पर्यावरण-अनुकूल विकल्प मौजूद हैं, तो लोगों को नियंत्रित तरीके से उनका उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
सरकार और एनजीटी की निगरानी
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और दिल्ली सरकार को भी नीति स्पष्ट करनी होगी। यदि अनुमति मिलती है, तो बाजारों में केवल प्रमाणित ‘ग्रीन पटाखे’ ही बेचे जा सकेंगे। इसके लिए प्रत्येक पैकेट पर QR कोड होगा, जिससे ग्राहक यह जांच सकेंगे कि वे असली ‘ग्रीन पटाखे’ खरीद रहे हैं या नहीं।
त्योहारों की रौनक और उम्मीदें
लोगों में इस खबर को लेकर काफी उत्साह है। कई परिवारों का कहना है कि दिवाली की असली खुशी तभी पूरी होती है जब आसमान में रंग-बिरंगे पटाखे चमकते हैं। वहीं पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि हमें जिम्मेदार नागरिक के रूप में ग्रीन पटाखों का ही चयन करना चाहिए और उनकी संख्या सीमित रखनी चाहिए।
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं। अगर कोर्ट अनुमति देता है, तो इस साल दिवाली का जश्न ‘ग्रीन’ अंदाज में मनाया जाएगा। यह फैसला न केवल लोगों की धार्मिक भावनाओं को सम्मान देगा, बल्कि पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।