




आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर बोले उपराष्ट्रपति, प्रस्तावना में बदलाव को बताया संविधान की आत्मा के साथ अन्याय।
संविधान की प्रस्तावना पर फिर गरमाई बहस
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में संविधान की प्रस्तावना से जुड़े बदलावों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि 1976 में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष‘ और ‘समाजवादी‘ जैसे शब्द संविधान की आत्मा के साथ किया गया अपमान थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा, “आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जो शब्द जोड़े गए, वे नासूर हैं। भारत की मूल आत्मा, भारत की सनातन संस्कृति के साथ अन्याय हुआ।”
“प्रस्तावना संविधान की आत्मा है”
धनखड़ ने कहा कि प्रस्तावना को उस समय सम्मान मिलना चाहिए था, लेकिन उसे तोड़ा-मरोड़ा और ध्वस्त किया गया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि
“दुनिया के अन्य किसी भी देश ने अपने संविधान की प्रस्तावना के साथ ऐसा प्रयोग नहीं किया, जैसा भारत में हुआ।”
डॉ. अंबेडकर को किया याद, मूल संविधान पर दिया जोर
धनखड़ ने अपने संबोधन में डॉ. भीमराव अंबेडकर को भी श्रद्धांजलि देते हुए कहा:
“अंबेडकर हमारे हृदय में हैं, हमारे विचारों में हैं और आत्मा में बसते हैं। जो शब्द बाद में जोड़े गए, उन्होंने मूल संविधान की भावना को कहीं न कहीं बाधित किया।”
युवाओं को दिया संदेश
धनखड़ ने देश की युवा पीढ़ी से आह्वान किया कि वे संविधान की मूल भावना को समझें और उसका सम्मान करें। उन्होंने आपातकाल को भारत के लोकतंत्र का “काला अध्याय” बताया और कहा कि इससे सबक लेने की जरूरत है।
RSS महासचिव के बयान से जुड़ा विवाद
गौरतलब है कि यह टिप्पणी उस समय आई है जब RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने हाल ही में संविधान की प्रस्तावना से ‘सेकुलर‘ और ‘सोशलिस्ट‘ शब्दों को हटाने की मांग की थी। इस पर विपक्षी दलों ने RSS और बीजेपी पर तीखा हमला बोला है।
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