




मोहम्मद इकबाल की जगह सरदार पटेल होंगे शामिल, ऑपरेशन सिंदूर को भी सिलेबस में जोड़ने की तैयारी।
नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) में अब पाठ्यक्रम का चेहरा बदलेगा। वाइस चांसलर प्रो. योगेश सिंह ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि अब ऐसे लेखक, शायर या विचारकों को सिलेबस से हटाया जाएगा जो भारत विरोधी विचारधारा को बढ़ावा देते हैं या जिनका “अनावश्यक महिमा मंडन” किया गया है।
प्रो. योगेश सिंह ने स्पष्ट किया, “पाकिस्तान एक ऐतिहासिक हकीकत है, लेकिन ऐसे शायर या लेखक जिन्हें पढ़ाना राष्ट्रीय हित के खिलाफ हो, उन्हें कोर्स में जगह नहीं दी जानी चाहिए।”
क्या होगा बदलाव?
इतिहास विभाग के आठवें सेमेस्टर से मोहम्मद इकबाल (जिन्होंने ‘सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान की वकालत की थी’) का पाठ हटाने की सिफारिश की गई है।
उनकी जगह सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान को जोड़ने का निर्णय लिया गया है।
यह प्रस्ताव पहले एकेडमिक स्टैंडिंग कमेटी, फिर अकादमिक काउंसिल और अंत में एग्जीक्यूटिव काउंसिल से पास हो चुका है।
अन्य विभागों में भी होगी समीक्षा
VC ने निर्देश दिए हैं कि सभी विभागाध्यक्ष अपने-अपने पाठ्यक्रमों की समीक्षा करें और पाकिस्तान या अन्य किसी राष्ट्र के भारत-विरोधी विचारकों को हटाएं। यदि आवश्यक हुआ तो बदलाव अगली एकेडमिक काउंसिल की बैठक में शामिल किए जाएंगे।
“ऑपरेशन सिंदूर” भी जोड़ा जा सकता है पाठ्यक्रम में
विश्वविद्यालय प्रशासन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को भी कोर्स में जोड़ने की योजना बना रहा है। यह ऑपरेशन भारतीय सेना द्वारा हाल ही में आतंकवाद के खिलाफ चलाया गया एक रणनीतिक मिशन है। प्रशासन का मानना है कि छात्रों को समकालीन राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों से अवगत कराना जरूरी है।
हालांकि इस कदम की विरोध और आलोचना भी हो रही है। कुछ शिक्षकों का मानना है कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य छात्रों को निष्पक्ष और आलोचनात्मक सोच सिखाना होना चाहिए, न कि केवल एकपक्षीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करना।
शिक्षकों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
किरोड़ीमल कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर रुद्राशीष चक्रवर्ती ने कहा, “विश्वविद्यालयों को छात्रों को सभी दृष्टिकोण सिखाने चाहिए — चाहे वे सहमत हों या नहीं।”
राजधानी कॉलेज के प्रोफेसर राजेश झा ने कहा कि, “सिलेबस तय करने की प्रक्रिया विषय विशेषज्ञों पर छोड़नी चाहिए, जिससे छात्र विषय की गहराई को समझ सकें।”
मुद्दे की जड़: मोहम्मद इकबाल कौन थे?
मोहम्मद इकबाल, जिन्हें ‘शायर-ए-मशरिक़’ कहा जाता है, उन्होंने ‘सारे जहाँ से अच्छा’ जैसे राष्ट्रगीत लिखे, लेकिन बाद में वे पाकिस्तान के निर्माण के कट्टर समर्थक बन गए।
उनकी राजनीतिक विचारधारा और पाकिस्तान को समर्थन देने वाली रचनाएं DU पाठ्यक्रम से हटाने का आधार बनी हैं।
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